जहाँ घंटियों की सरगम है,
जहां वंदना की है वाणी।
महानदी की लहर लहर में,
बसती कविता कल्याणी॥
अमर सभ्यता सोई हुयी है,
महानदी की घाटी में।
मेरे पावन जन्मों का ,
पुण्य उदय इस माटी में॥
कण-कण आतुर होता है,
जिनका लेने पावन नाम।
अखिल लोक के शांतिप्रदायक,
राजीमलोचन तुम्हें प्रणाम॥
रचना- संत पवन दीवान जी (ब्रह्मलीन)
संकलन-विरेन्द्र साहू