सोमवार, 29 जुलाई 2019

हिन्दी की जानकारी

व्याकरण ज्ञान

मात्रा भार गणना

(1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे - अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है।

(2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं, जैसे - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा 2 है।

(3) व्यंजनों की मात्रा 1 होती है , जैसे - क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म / य,र,ल,व,श,ष,स,ह।

वास्तव में व्यंजन का उच्चारण स्वर के साथ ही संभव है, इसलिए उसी रूप में यहाँ लिखा गया है। अन्यथा क्, ख्, ग् … आदि को व्यंजन कहते हैं, इनमें अकार मिलाने से क, ख, ग ... आदि बनते हैं जो उच्चारण योग्य होते हैं।

(4) व्यंजन में ह्रस्व इ, उ, ऋ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 1/ल ही रहता है।

(5) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 2 हो जाता है।

(6) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पड़ता है, जैसे – रँग = 11, चाँद = 21, माँ = 2, आँगन = 211, गाँव = 21

(7) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार 2 हो जाता है, जैसे – रंग = 21, अंक = 21, कंचन = 211, घंटा = 22, पतंगा = 122

(8) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पड़ता है,  जैसे – नहीं = 12, भींच = 21, छींक = 21,

कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं।

(9) संयुक्ताक्षर का मात्राभार 1 (लघु) होता है, जैसे – स्वर = 11, प्रभा = 12, श्रम = 11, च्यवन = 111

(10) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार 1 (लघु) ही रहता है, जैसे – प्रिया = 12, क्रिया = 12, द्रुम = 11, च्युत = 11, श्रुति = 11

(11) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – भ्राता = 22, श्याम = 21, स्नेह = 21, स्त्री = 2, स्थान = 21

(12) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – नम्र = 21, सत्य = 21, विख्यात = 221

(13) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – हास्य = 21, आत्मा = 22, सौम्या = 22, शाश्वत = 211, भास्कर = 211 

(14) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (12) के कुछ अपवाद भी हैं, जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है, अशुद्ध उच्चारण नहीं।

जैसे – तुम्हें = 12, तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे = 122, जिन्हें = 12, जिन्होंने = 122, कुम्हार = 121, कन्हैया = 122, मल्हार = 121, कुल्हाड़ी = 122

तत्सम शब्द

तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना किसी परिवर्तन के ले लिया जाता है उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं। इनमें ध्वनि परिवर्तन नहीं होता है।

जैसे :- हिंदी , बांग्ला , मराठी , गुजराती , पंजाबी , तेलगु , कन्नड़ , मलयालम आदि।

*तद्भव शब्द*

समय और परिस्थिति की वजह से तत्सम शब्दों में जो परिवर्तन हुए हैं उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं।

🌷तत्सम और तद्भव शब्दों को पहचानने के नियम🌷

(1) तत्सम शब्दों के पीछे ‘ क्ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों के पीछे ‘ ख ‘ या ‘ छ ‘ शब्द का प्रयोग होता है।

(2) तत्सम शब्दों में ‘ श्र ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(3) तत्सम शब्दों में ‘ श ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(4) तत्सम शब्दों में ‘ ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है।

(5) तत्सम शब्दों में ‘ ऋ ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(6) तत्सम शब्दों में ‘ र ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(7) तत्सम शब्दों में ‘ व ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ ब ‘ का प्रयोग होता है।

*✳तत्सम शब्द = तद्भव शब्द के उदाहरण इस प्रकार हैं*

*अ, आ से शुरू होंने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

1. आम्र = आम
2. आश्चर्य = अचरज
3. अक्षि = आँख
4. अमूल्य = अमोल
5. अग्नि = आग
6. अँधेरा = अंधकार
7. अगम = अगम्य
8. आधा = अर्ध
9. अकस्मात = अचानक
10. आलस्य = आलस
11. अज्ञानी = अज्ञानी
12. अश्रु = आँसू
13. अक्षर = अच्छर
14. अंगरक्षक = अंगरखा
15. आश्रय = आसरा
16. आशीष = असीस
17. अशीति = अस्सी
18. ओष्ठ = ओंठ
19. आरात्रिका = आरती
20. अमृत = अमिय
21. अंध = अँधा
22. अर्द्ध = आधा
23. अन्न = अनाज
24. अनर्थ = अनाड़ी
25. अग्रणी = अगुवा
26. अक्षवाट = अखाडा
27. अंगुष्ठ = अंगूठा
28. अक्षोट = अखरोट
29. अट्टालिका = अटारी
30. अष्टादश = अठारह
31. अंक = आँक
32. अंगुली = ऊँगली
33. अंचल = आंचल
34. अंजलि = अँजुरी
35. अखिल = आखा
36. अगणित = अनगिनत
37. अद्य = आज
38. अम्लिका = इमली
39. अमावस्या = अमावस
40. अर्पण = अरपन
41. अन्यत्र = अनत
42. अनार्य = अनाड़ी
43. अज्ञान = अजान
44. आदित्यवार = इतवार
45. आभीर = अहेर
46. आम्रचूर्ण = अमचूर
47. आमलक = आँवला
48. आर्य = आरज
49. आश्रय = आसरा
50. आश्विन = आसोज
51. आभीर = अहेर

*इ , ई से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

52. इक्षु = ईंख
53. ईर्ष्या = इरषा
54. इष्टिका = ईंट

*उ , ऊ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

55. उलूक = उल्लू
56. ऊँचा = उच्च
57. उज्ज्वल = उजला
58. उष्ट्र = ऊँट
59. उत्साह = उछाह
60. ऊपालम्भ = उलाहना
61. उदघाटन = उघाड़ना
62. उपवास = उपास
63. उच्छवास = उसास
64. उद्वर्तन = उबटन
65. उलूखल = ओखली
66. ऊषर = ऊँट

*ए , ऐ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

67. एकादश = ग्यारह
68. एला = इलायची

ऋ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
69. ऋक्ष = रीछ

*क , ख से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

70. किरण = किरन
71. कुपुत्र = कपूत
72. कर्म = काम
73. काक = कौआ
74. कपोत = कबूतर
75. कदली = केला
76. कपाट = किवाड़
77. कीट = कीड़ा
78. कूप = कुआँ
79. कोकिल = कोयल
80. कर्ण = कान
81. कृषक = किसान
82. कुम्भकर = कुम्हार
83. कटु = कडवा
84. कुक्षी = कोख
85. क्लेश = कलेश
86. काष्ठ = काठ
87. कृष्ण = किसन
88. कुष्ठ = कोढ़
89. कृतगृह = कचहरी
90. कर्पूर = कपूर
91. कार्य = काज
92. कार्तिक = कातिक
93. कुक्कुर = कुत्ता
94. कन्दुक = गेंद
95. कच्छप = कछुआ
96. कंटक = काँटा
97. कुमारी = कुँवारी
98. कृपा = किरपा
99. कपर्दिका = कौड़ी
100. कुब्ज = कुबड़ा
101. कोटि = करोड़
102. कर्तव्य = करतब
103. कंकण = कंगन
104. किंचित = कुछ
105. केवर्त = केवट
106. खटवा = खाट

*ग , घ से शुरु होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

107. घोटक = घोडा
108. गृह = घर
109. घृत = घी
110. ग्राम = गाँव
111. गर्दभ = गधा
112. घट = घडा
113. ग्रीष्म = गर्मी
114. ग्राहक = गाहक
115. गौ = गाय
116. घृणा = घिन
117. गर्जर = गाजर
118. ग्रन्थि = गाँठ
119. घटिका = घड़ी
120. गोधूम = गेंहूँ
121. ग्राहक = गाहक
122. गौरा = गोरा
123. गृध = गीध
124. गायक = गवैया
125. ग्रामीण = गँवार
126. गोमय = गोबर
127. गृहिणी = घरनी
128. गोस्वामी = गुसाई
129. गोपालक = ग्वाला
130. गर्मी = घाम

*च , छ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

131. चन्द्र = चाँद
132. छिद्र = छेद
133. चर्म = चमडा
134. चूर्ण = चूरन
135. छत्र = छाता
136. चतुर्विंश = चौबीस
137. चतुष्कोण = चौकोर
138. चतुष्पद = चौपाया
139. चक्रवाक = चकवा
140. चर्म = चाम
141. चर्मकार = चमार
142. चंचु = चोंच
143. चतुर्थ = चौथा
144. चैत्र = चैत
145. चंडिका = चाँदनी
146. चित्रकार = चितेरा
147. चिक्कण = चिकना
148. चवर्ण = चबाना
149. चक = चाक
150. छाया = छाँह

*ज , झ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

151. जिह्वा = जीभ
152. ज्येष्ठ = जेठ
153. जमाता = जवाई
154. ज्योति = जोत
155. जन्म = जनम
156. जंधा = जाँध
157. झरन = झरना
158. जीर्ण = झीना

*त , थ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

159. तैल = तेल
160. तृण = तिनका
161. ताम्र = ताँबा
162. तिथिवार = त्यौहार
163. ताम्बूलिक = तमोली
164. तड़ाग = तालाब
165. त्वरित = तुरंत
166. तपस्वी = तपसी
167. तुंद = तोंद
168. तीर्थ = तीरथ

*द , ध से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द*

169. दूर्वा = दूब
170. दधि = दही
171. दुग्ध = दूध
172. दीपावली = दीवाली
173. धर्म = धरम
174. दंत = दांत
175. दीप = दीया
176. धूम्र = धुआँ
177. धैर्य = धीरज
178. दिशांतर = दिशावर
179. धृष्ठ = ढीठ
180. दंतधावन = दतून
181. दंड = डंडा
182. द्वादश = बारह
183. द्विगुणा = दुगुना
184. दंष्ट्रा = दाढ
185. दिपशलाका = दिया सलाई
186. द्विप्रहरी = दुपहरी
187. धरित्री = धरती
188. दंष = डंका
189. द्विपट = दुपट्टा
190. दुर्बल = दुर्बला
191. दुःख = दुख
192. द्वितीय = इजा
193. दक्षिण = दाहिना
194. धूलि = धुरि
195. धन्नश्रेष्ठी = धन्नासेठी
196. दौहित्र = दोहिता
197. देव = दई

*न , प से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

198. पक्षी = पंछी
199. नयन = नैन
200. पत्र = पत्ता
201. नृत्य = नाच
202. निंद्रा = नींद
203. पद = पैर
204. नव्य = नया
205. प्रस्तर = पत्थर
206. नासिका = नाक
207. पिपासा = प्यास
208. पक्ष = पंख
209. नवीन = नया
210. नग्न = नंगा
211. पुत्र = पूत
212. प्रहर = पहर
213. पितृश्वसा = बुआ
214. प्रतिवेश्मिक = पड़ोसी
215. प्रत्यभिज्ञान = पहचान
216. प्रहेलिका = पहेली
217. पुष्प = फूल
218. पृष्ठ = पीठ
219. पौष = पूस
220. पुत्रवधू = पतोहू
221. पंच = पाँच
222. नारिकेल = नारियल
223. निष्ठुर = निठुर
224. पश्चाताप = पछतावा
225. प्रकट = प्रगट
226. प्रतिवासी = पड़ोसी
227. पितृ = पिता
228. पीत = पीला
229. नापित = नाई
230. पर्यंक = पलंग
231. पक्वान्न = पकवान
232. पाषाण =पाहन
233. प्रतिच्छाया = परछाई
234. निर्वाह = निवाह
235. निम्ब = नीम
236. नकुल = नेवला
237. नव = नौ
238. परीक्षा = परख
239. पुष्कर = पोखर
240. पर्ण = परा
241. पूर्व = पूरब
242. पंचदष = पन्द्रह
243. पक्क = पका
244. पट्टिका = पाटी
245. पवन = पौन
246. प्रिय = पिय
247. पुच्छ = पूंछ
248. पर्पट = पापड़
249. फणी = फण
250. पद्म = पदम
251. परख: = परसों
252. पाष = फंदा
253. प्रस्वेदा = पसीना

*फ , ब से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

254. बालुका = बालू
255. बिंदु = बूंद
256. फाल्गुन = फागुन
257. बधिर = बहरा
258. बलिवर्द = बैल
259. बली वर्द = बींट

*भ , म से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

260. मयूर = मोर
261. मुख = मुँह
262. मक्षिका = मक्खी
263. मस्तक = माथा
264. भिक्षुक = भिखारी
265. मृत्यु = मोत
266. भिक्षा = भीख
267. मातुल = मामा
268. भ्राता = भाई
269. मिष्ट = मीठा
270. मृत्तिका = मिट्टी
271. भुजा = बाँह
272. भगिनी = बहिन
273. मृग = मिरग
274. मनुष्य = मानुष
275. भक्त = भगत
276. भल्लुक = भालू
277. मार्ग = मग
278. मित्र = मीत
279. मुष्टि = मुट्ठी
280. मूल्य = मोल
281. मूषक = मूस
282. मेघ = मेह
283. भाद्रपद = भादौं
284. मौक्तिक = मोती
285. मर्कटी = मकड़ी
286. मश्रु = मूंछ
287. भद्र = भला
288. भ्रत्जा = भतीजा
289. भ्रमर = भौरां
290. भ्रू = भौं
291. मुषल = मूसल
292. महिषी = भैंस
293. मरीच = मिर्च

*य , र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

294. रात्रि = रात
295. युवा = जवान
296. यश = जस
297. राशि = रास
298. रोदन = रोना
299. योगी = जोगी
300. राजा = राय
301. यमुना = जमुना
302. यज्ञोपवीत = जनेऊ
303. यव = जौ
304. राजपुत्र = राजपूत
305. यति = जति
306. यूथ = जत्था
307. युक्ति = जुगति
308. रक्षा = राखी
309. रज्जु = रस्सी
310. रिक्त = रीता
311. यषोदा = जसोदा

*ल , व से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

312. वानर = बन्दर
313. लौह = लोहा
314. वत्स = बच्चा
315. विवाह = ब्याह
316. वधू = बहू
317. वाष्प = भाप
318. विद्युत् = बिजली
319. वार्ता = बात
320. लक्ष = लाख
321. लक्ष्मण = लखन
322. व्याघ्र = बाघ
323. वणिक = बनिया
324. वाणी = बैन
325. वरयात्रा = बारात
326. वर्ष = बरस
327. वैर = बैर
328. लज्जा = लाज
329. लवंग = लौंग
330. लोक = लोग
331. वट = बड
332. वज्रांग = बजरंग
333. वल्स = बछड़ा
334. लोमशा = लोमड़ी
335. वक = बगुला
336. वंष = बांस
337. वृश्चिका = बिच्छु
338. लवणता = लुनाई
339. लेपन = लीपना
340. विकार = विगाड
341. व्यथा = विथा
342. वर्षा = बरसात

*स , श , ष , श्र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

343. सूर्य = सूरज
344. स्वर्ण = सोना
345. स्तन = थन
346. सूची = सुई
347. सुभाग = सुहाग
348. शिक्षा = सीख
349. शुष्क = सूखा
350. सत्य = सच
351. सर्प = साँप
352. श्रंगार = सिंगर
353. शत = सौ
354. सप्त = सात
355. शर्कर = शक्कर
356. शिर = सिर
357. श्रृंग = सींग
358. श्रेष्ठी = सेठ
359. श्रावण = सावन
360. शाक = साग
361. शलाका = सलाई
362. श्यामल = साँवला
363. शून्य = सूना
364. शप्तशती = सतसई
365. स्फोटक = फोड़ा
366. स्कन्ध = कंधा
367. स्नेह = नेह
368. श्यालस = साला
369. शय्या = सेज
370. स्वसुर = ससुर
371. श्रंखला = साँकल
372. श्रृंगाल = सियार
373. शिला = सिल
374. सूत्र = सूत
375. शीर्ष = सीस
376. स्थल = थल
377. स्थिर = थिर
378. ससर्प = सरसों
379. सपत्नी = सौत
380. स्वर्णकार = सुनार
381. शूकर = सूअर
382. शाप = श्राप
383. श्याली = साली
384. श्मषान = समसान
385. शुक = सुआ

*ह , क्ष से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-*

386. हास्य = हँसी
387. क्षीर = खीर
388. क्षेत्र = खेत
389. हिरन = हरिण
390. हस्त = हाथ
391. हस्ती = हाथी
392. क्षत्रिय = खत्री
393. क्षार = खार
394. क्षत = छत
395. हरिद्रा = हल्दी
396. क्षति = छति
397. क्षीण = छीन
398. क्षत्रिय = खत्री
399. हट्ट = हाट
400. होलिका = होली
401. ह्रदय = हिय
402. हंडी = हांड़ी

त्र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द

403. त्रिणी = तीन
404. त्रयोदष = तेरह

महत्वपूर्ण जानकारी

*विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र*                               (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )             ** आप जिज्ञासुओं के व अपने आने वाली पीढ़ी के लिये ये बहुत काम का संकलन है,कृपया बच्चों को यह भी सिखाए-

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

गुरुवार, 27 जून 2019

कवि सम्मेलन में मेरी प्रस्तुति

उल्लाला छंद

उल्लाला
हँस बतिया सबसन वीर तैं,झन रख रफटफ टोन जी।
गउ कोन जनी कब आ जही,यमराजा के फोन जी।।

मीठा बानी ला समझ ,सबले  बढ़िया मंत्र जी।
बैरी  ला  हितवा  करे , अइसन  हे ये यंत्र जी।।

सुखी ददा दाई रखय , जब बेटा निज पास जी।
देवय तभ्भे  देवता , धन  वैभव  पद खास जी॥

दाई  ददा  ल मानबो  ,  जब देवी भगवान जी।
तभ्भे खच्चित बन जही , हर घर सरग समान॥

दुनिया  मा अनमोल जी , हे  महतारी  के मया।
अपन खुशी ला पाट के , देथे सुत सुख के पया।

राखे नौ दस माह ले , सहिके जोखिम लाख जी।
पाथे   महतारी  तभे , सुख  के  सुग्घर पाख जी।।

माता के करनी घलो , दीपक ज्योति समान हे।
रौशन  कर  संतान ला , करथे काज  महान हे।।

मुरहा  ला   दे   जिंदगी , करथे   माँ  उद्धार  हे।
जेकर  छाती  ले   बहे , पावन  अमरित धार हे।।

सच्चा जीवन दायिनी , माँ अमरित के खान हे।
कल्पवृक्ष के तुल्य अउ , कामद गाय समान हे।।

ममता  करुणा अउ कहाँ , पाबे  तैं   इंसान रे।
जूझ काल  के गाल माँ , तोर  बचाथे  जान रे।।

सदा  झुकावौ  शीश ला , महतारी  के मान मा।
जग जननी माँ ले बड़े , भगवन नहीं जहान मा।।

छप्पय छंद
सौंहत  के  भगवान , ददा   दाई   ला  जानौ।
सेवौ  साँझ  बिहान , बात अउ उनखर मानौ।
देथे  जीवन   दान , पियाके    दूध  ल    दाई।
पालन  करके   बाप , हरे    जम्मों   करलाई।
मिलथे मनवा मान ले , सेवा के  परिणाम हा।
मातु पिता आशीष ले , बनथे बिगड़े काम हा।।

कुण्डलिया
हँसना जिनगी मा सदा , झन रहि कभू उदास।
हाँसत-हाँसत  जे  जिये , पाये  धन-पद खास।
पाये  धन  पद  खास , होय जग  मान  बड़ाई।
फल  आशा  ला त्याग , लगन से करौ कमाई।
मान वीर के  बात , लोभ  मा झन तो फँसना।
गाँठ बाँध ले  गोठ , हमेशा   मुचमुच   हँसना।।

कुण्डलिया छंद :-
बेटी  पहुना  बन  जथे , जब बिहाव हा होय।
मन मा नोनी सोच के , कलप कलप के रोय।
कलप कलप के रोय , दुःख के  आँसू  भारी।
कहे  जनम  का देय , विधाता  अबला  नारी।
सुख  के   दे  भंडार , भरौ   खुशियाँ ले पेटी।
करौ  मान  सम्मान , होय  जब  पहुना  बेटी।।

दोहा
बेटी   बहिनी   जेन दिन , पाही   सच्चा  मान।
उही  समे   ले  देस  हा , बनही   गजब महान॥

छप्पय छंद
चलो   लगाबो   पेड़ , राज  ला  हरियर  करबो।
सुग्घर  सुखद भविष्य , चमाचम उज्जर करबो।
खेत  खार   के  मेड़ , बाँध  अउ   ताल  तलैया।
औषधि  अउ  फलदार , लगाबो  पेड़  ल  भैया।
बन जाही जब रूख तब,देही फल अउ छाँव गा।
रही राज खुशहाल अउ,हरियर दिखही गाँव गा।।

छप्पय छंद
पर्यावरण    बँचाव , पेड़    पौधा    ला    रोपौ।
हरियर  कलगी  खास , धरा  के  मूड़ म  खोपौ।
दुनिया के  सब जीव , रहय जी  सुख से घर मा।
छूटे  झन   आवास , बिनाशी   ठौर    शहर  मा।
धरती  के  सिंगार अउ , करौ जीव  उपकार जी।
सुख खातिर सब जीव के,हरियर रख संसार जी।।

कुण्डलिया
आज  नँदागे  गाँव मा , खेल  पताड़ी मार।
भँवरा बाँटी के घलो , कोन्हों नहीं  चिन्हार।
कोन्हों नहीं चिन्हार , भुलागे आज जमाना।
आघू होही काय , नहीं अब हवय ठिकाना।
कहे वीर कविराय , लोग सब गजब छँदागे।
हमर  राज के खेल , सबे हर  आज  नँदागे।।

कुण्डलिया
छत मा  पानी  राख दे , आथे  चिरई  चींव।
देही वो आशीष  ला , अपन जुड़ाके  जीव।
अपन जुड़ाके जीव , गीत ला बढ़िया गाही।
नरियाके घर  द्वार , बालमन  ला  बहलाही।
कर सेवा उपकार , कमाके पुण्य जगत मा।
चिरई मन बर वीर , राख  दे  पानी छत मा।।

उल्लाला
हँस बतिया सबसन वीर तैं,झन रख रफटफ टोन जी।
गउ कोन जनी कब आ जही , यमराजा के फोन जी।।

दोहा

दाई  ददा   ल  मानबो  ,  जब   देवी भगवान।2
तभ्भे गौकी   बन जही , हर घर  सरग समान॥

सुखी  ददा दाई रखय , जब  बेटा  निज पास।2
देवै   तभ्भे     देवता , धन   वैभव  पद खास॥

छप्पय छंद
सौंहत   के   भगवान , ददा   दाई   ला  जानौ।2
सेवौ  साँझ  बिहान , बात  अउ  उनखर मानौ।
देथे   जीवन   दान , पियाके   दूध   ल    दाई।2
पाल-पोष  के    बाप , हरे    जम्मों   करलाई।
मिलथे मनवा  मान ले , सेवा  के  परिणाम हा।2
मातु पिता आशीष ले , बनथे  बिगड़े काम हा।।

छंद : उल्लाला
दुनिया  मा अनमोल जी , हे महतारी  के मया।2
अपन खुशी ला पाट के,देथे सुत सुख के पया।।

राखे नौ दस माह ले,सहिके जोखिम लाख जी।2
पाथे  महतारी  तभे , सुख  के सुग्घर पाख जी।।

माता के करनी घलो , दीपक ज्योति  समान हे।2
रौशन कर  संतान ला , करथे  काज  महान हे।।

लइका  ला   दे  जिंदगी , करथे मां  उद्धार जी।2
उनखर छाती मा बहे , पावन अमरित धार जी।।

सचमुच जीवन दायिनी,माँ अमरित के खान हे।2
कल्पवृक्ष के तुल्य अउ ,कामद गाय समान हे।।

ममता   करुणा अउ कहाँ , पाबे  तैं  इंसान रे।2
जूझ काल  के गाल माँ , तोर  बचाथे  जान रे।।

सदा  झुकावौ  शीश ला , महतारी के मान मा।2
जग जननी माँ ले बड़े ,भगवन नहीं जहान मा।।

दोहा
मीठा   बानी  ला समझ , सबले  बढ़िया  मंत्र।
बैरी    ला  हितवा  करे , अइसन   हे  ये  यंत्र।।

आरती मा पूजा थाली के। सिंगार मा रंग लाली के।
सीमा में रखवाली के। माता मा वीणा वाली के।

ब्रह्माण्ड मा रवि के। नेता मन के सुंदर छवि के।
बंबई मा अंधेरी  नवी के। दुनिया  मा  कवि के॥

बाग बगीचा मा माली के।प्यार मा जनाबे आली के।
नगर  निगम मा नाली के। पेड़  पौधा  मा डाली के।

बिहना चाय पियाली के। ससुराल मा साली के।
कुरता  मा बंगाली के।। कवि सम्मेलन मा ताली....

१गाँव के बड़ा महत्व हे।
२प्रसिद्ध कवि ...

जब देखा उन्होंने तिरछी नज़र से हम मदहोश हो गए
जब पताचला कि नज़रें ही तिरछी हैं हम बेहोश हो गए

अगर सीता बने जो तू तो मैं भी राम बन जाऊं
अगर राधा बने जो तू तो मैं भी श्याम बन जाऊं
बनाना जो भी चाहो तुम बनू सब कुछ मेरी प्रियतम
अगर सोडा बने जो तू तो मैं भी जाम बन जाऊं

जेती देखबे तेती संगी मया के मतवार बइठे हे।
कोरी कोरी निपट गे खैरखा तैयार बइठे हे।
बरबाद होथे निपोरवा मन टुरी के चक्कर मा।
अउ कहिथे सरकार के सेती बेरोजगार बइठे हे॥

येती ओती आँखी मटकाना अब इम्तिहान लगथे।
बिना रंग के कोनो नइहे रंग मा बुड़े जहान लगथे।
कइसे पहचाने बबा नारीमन के अदाए रंगबसंती ला
ब्युटी पार्लर के जमाना हे बुढ़िया घलो जवान लगथे॥

दाई हर दाई होथे , कभू  बाप तो  कभू भाई होथे।
त्याग अउ तपस्या कस जिनगी बड़ करलाई होथे।
चोट लगथे बेटा ला अउ घाव होथे दाई के देंह मा।
सबके पीड़ा ला अनुभव करके  रोवैया  दाई होथे॥

अत्याचार झन करव फूलत फलत फोंक मा।
बेटी ला झन सरमेटव गंदा फरफंद जोक मा।
बेटी मान मर्यादा लाज अउ सृष्टि के आधार हे
अइसन दुलौरिन ला झन मारव कोख मा॥

देवालयों में बजते शंख की ध्वनि है बेटी।
देवताओं के हवन यज्ञ की अगनि है बेटी।
खुशनसीब है जिनके आंगन में है बेटी।
जग की तमाम खुशियों की जननि है बेटी॥

बहर : २१२-१२२२-२१२-१२२२*
लय :तुम तो ठहर परदेसी
खाके' चटनी' बासी मय सेवा' ला बजाहूँ ओ।
तोर नाव दुनिया मा सब डहर फै'लाहूँ ओ।

माटी' अउ म्हतारी के जग म बड़ महत्तम हे।
तोर जस अबड़ दानी अउ कहां ले पाहूँ ओ।

जिंदगी मा मनखे के बस तहीं अधारी हस।
गुन ल तोर' गाहूँ मय महिमा' ला बताहूँ ओ।

माटी के कथा गाथे राम कृष्ण जस ज्ञानी।
उखरे' बोली' भाखा ला बस महूँ सुनाहूँ ओ।

संझा' अउ बिहनिया ओ वीर तोर जस गावे।
माटी' के मोर करजा ला अइसने चुकाहूँ ओ॥

पतरेंगी  अस  छोकरी , आये  रोज बजार।
अंतस  ओला  देख के , गाये  गीत  हजार।।

डर के मारे नइ कहँव , अपन हृदय के बात।
तभो समझ वो जाय जी , मोर सबे जज्बात।।

तूमा  भाँटा  ले  सजे , पसरा  लागे   नीक।
घेरी   बेरी  प्यार ले ,  बात करय सब ठीक।।

आवत जावत कहि परौं,का राखे हस हीर।
वोहर कहि  दे  हाँव ले , आई  लभ यू वीर।।

बड़ लजकुरहा आँव मैं , लागय मोला लाज।
बाजय गदकड़ गद तभो , एक सार के साज।।

मिर्चा  भाटा  संग  मा , लेवौं  रोज  पताल।
बइठौ पसरा मेर ता , अपन  बतावय  हाल।।

भरगे  पीरा  मूड़  मा , करम  फाटगे मोर।
सब्जी वाली छोकरी , कहिस हरौ मैं तोर।।

विरेन्द्र कुमार साहू

आरती अवध बिहारी की

आरती गीत:-

(आरती   अवध   बिहारी   की)

आरती    श्री    बनवारी    की
सुमति सिया जनक दुलारी की

गले  में    मोती     की    माला
छटा  छवि   महा  सिंधु   वाला
रवी   सी  चमक
मणी सी  झलक
प्रलय की पलक
चरित  शुभ  प्रीतम  प्यारी   की
आरती   श्री      बनवारी     की

कमल  नीला  सम  तन   काला
उजाला    कुंद    इन्दु      वाला
हँसत सिय मंद
भजत शिव चंद
कटत भव  फंद
अमित  छवि  सिंधु  खरारी  की
आरती     श्री     बनवारी    की

अवध  प्रिय  रवि कुल के भूषण
वधत   अरि   रावण   खर दूषण
बसे  हनु   हृदय
करें  लय  प्रलय
भजों शुभ समय
द्रवित  दुख  भव   भयहारी  की
आरती     श्री      बनवारी    की

रचना : विरेन्द्र कुमार साहू "प्रवीर"

गजल के बहर

गजल का प्रमुख बहर:-

1.
(बहरे कामिल मुसम्मन सालिम)
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212

2.
(बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून)
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22 

3.
(बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर)
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
221 2122 221 2122

4.
(बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ)
मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22

5.
(बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़)
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212

6.
(बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम)
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122

7.
(बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम)
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122

8.
(बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर)
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12

9.
(बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम)
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212

10.
(बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर)
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2

11.
(बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम)
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
लय :- तुम अगर साथ देने का वादा करो

12.
(बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला)
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122

13.
(बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम)
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212

14.
(बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून)
मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन
2212 1212

15.
(बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम)
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212

16.
(बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम)
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212

17.
(बहरे रमल मुरब्बा सालिम)
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122

18.
(बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन)
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22

19.
(बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़)
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 212




20.
(बहरे रमल मुसद्दस सालिम)
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122

21.
(बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़)
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212

22.
(बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़)
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22

23.
(बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन])
फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन
1121 2122 1121 2122

24.
(बहरे रमल मुसम्मन सालिम)
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122

25.
(बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़)
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122

26.
(बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम)
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222

27.
(बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़)
मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन
221 1221 1221 122

28.
(बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम)
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222

29.
(बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम)
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे

30.
(बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़)
फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
212 1212 1212 1212

31.
(बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़)
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212

32.
(बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम)
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

संग्रह : विरेन्द्र कुमार साहू
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