उल्लाला छंद
उल्लाला
हँस बतिया सबसन वीर तैं,झन रख रफटफ टोन जी।
गउ कोन जनी कब आ जही,यमराजा के फोन जी।।
मीठा बानी ला समझ ,सबले बढ़िया मंत्र जी।
बैरी ला हितवा करे , अइसन हे ये यंत्र जी।।
सुखी ददा दाई रखय , जब बेटा निज पास जी।
देवय तभ्भे देवता , धन वैभव पद खास जी॥
दाई ददा ल मानबो , जब देवी भगवान जी।
तभ्भे खच्चित बन जही , हर घर सरग समान॥
दुनिया मा अनमोल जी , हे महतारी के मया।
अपन खुशी ला पाट के , देथे सुत सुख के पया।
राखे नौ दस माह ले , सहिके जोखिम लाख जी।
पाथे महतारी तभे , सुख के सुग्घर पाख जी।।
माता के करनी घलो , दीपक ज्योति समान हे।
रौशन कर संतान ला , करथे काज महान हे।।
मुरहा ला दे जिंदगी , करथे माँ उद्धार हे।
जेकर छाती ले बहे , पावन अमरित धार हे।।
सच्चा जीवन दायिनी , माँ अमरित के खान हे।
कल्पवृक्ष के तुल्य अउ , कामद गाय समान हे।।
ममता करुणा अउ कहाँ , पाबे तैं इंसान रे।
जूझ काल के गाल माँ , तोर बचाथे जान रे।।
सदा झुकावौ शीश ला , महतारी के मान मा।
जग जननी माँ ले बड़े , भगवन नहीं जहान मा।।
छप्पय छंद
सौंहत के भगवान , ददा दाई ला जानौ।
सेवौ साँझ बिहान , बात अउ उनखर मानौ।
देथे जीवन दान , पियाके दूध ल दाई।
पालन करके बाप , हरे जम्मों करलाई।
मिलथे मनवा मान ले , सेवा के परिणाम हा।
मातु पिता आशीष ले , बनथे बिगड़े काम हा।।
कुण्डलिया
हँसना जिनगी मा सदा , झन रहि कभू उदास।
हाँसत-हाँसत जे जिये , पाये धन-पद खास।
पाये धन पद खास , होय जग मान बड़ाई।
फल आशा ला त्याग , लगन से करौ कमाई।
मान वीर के बात , लोभ मा झन तो फँसना।
गाँठ बाँध ले गोठ , हमेशा मुचमुच हँसना।।
कुण्डलिया छंद :-
बेटी पहुना बन जथे , जब बिहाव हा होय।
मन मा नोनी सोच के , कलप कलप के रोय।
कलप कलप के रोय , दुःख के आँसू भारी।
कहे जनम का देय , विधाता अबला नारी।
सुख के दे भंडार , भरौ खुशियाँ ले पेटी।
करौ मान सम्मान , होय जब पहुना बेटी।।
दोहा
बेटी बहिनी जेन दिन , पाही सच्चा मान।
उही समे ले देस हा , बनही गजब महान॥
छप्पय छंद
चलो लगाबो पेड़ , राज ला हरियर करबो।
सुग्घर सुखद भविष्य , चमाचम उज्जर करबो।
खेत खार के मेड़ , बाँध अउ ताल तलैया।
औषधि अउ फलदार , लगाबो पेड़ ल भैया।
बन जाही जब रूख तब,देही फल अउ छाँव गा।
रही राज खुशहाल अउ,हरियर दिखही गाँव गा।।
छप्पय छंद
पर्यावरण बँचाव , पेड़ पौधा ला रोपौ।
हरियर कलगी खास , धरा के मूड़ म खोपौ।
दुनिया के सब जीव , रहय जी सुख से घर मा।
छूटे झन आवास , बिनाशी ठौर शहर मा।
धरती के सिंगार अउ , करौ जीव उपकार जी।
सुख खातिर सब जीव के,हरियर रख संसार जी।।
कुण्डलिया
आज नँदागे गाँव मा , खेल पताड़ी मार।
भँवरा बाँटी के घलो , कोन्हों नहीं चिन्हार।
कोन्हों नहीं चिन्हार , भुलागे आज जमाना।
आघू होही काय , नहीं अब हवय ठिकाना।
कहे वीर कविराय , लोग सब गजब छँदागे।
हमर राज के खेल , सबे हर आज नँदागे।।
कुण्डलिया
छत मा पानी राख दे , आथे चिरई चींव।
देही वो आशीष ला , अपन जुड़ाके जीव।
अपन जुड़ाके जीव , गीत ला बढ़िया गाही।
नरियाके घर द्वार , बालमन ला बहलाही।
कर सेवा उपकार , कमाके पुण्य जगत मा।
चिरई मन बर वीर , राख दे पानी छत मा।।
उल्लाला
हँस बतिया सबसन वीर तैं,झन रख रफटफ टोन जी।
गउ कोन जनी कब आ जही , यमराजा के फोन जी।।
दोहा
दाई ददा ल मानबो , जब देवी भगवान।2
तभ्भे गौकी बन जही , हर घर सरग समान॥
सुखी ददा दाई रखय , जब बेटा निज पास।2
देवै तभ्भे देवता , धन वैभव पद खास॥
छप्पय छंद
सौंहत के भगवान , ददा दाई ला जानौ।2
सेवौ साँझ बिहान , बात अउ उनखर मानौ।
देथे जीवन दान , पियाके दूध ल दाई।2
पाल-पोष के बाप , हरे जम्मों करलाई।
मिलथे मनवा मान ले , सेवा के परिणाम हा।2
मातु पिता आशीष ले , बनथे बिगड़े काम हा।।
छंद : उल्लाला
दुनिया मा अनमोल जी , हे महतारी के मया।2
अपन खुशी ला पाट के,देथे सुत सुख के पया।।
राखे नौ दस माह ले,सहिके जोखिम लाख जी।2
पाथे महतारी तभे , सुख के सुग्घर पाख जी।।
माता के करनी घलो , दीपक ज्योति समान हे।2
रौशन कर संतान ला , करथे काज महान हे।।
लइका ला दे जिंदगी , करथे मां उद्धार जी।2
उनखर छाती मा बहे , पावन अमरित धार जी।।
सचमुच जीवन दायिनी,माँ अमरित के खान हे।2
कल्पवृक्ष के तुल्य अउ ,कामद गाय समान हे।।
ममता करुणा अउ कहाँ , पाबे तैं इंसान रे।2
जूझ काल के गाल माँ , तोर बचाथे जान रे।।
सदा झुकावौ शीश ला , महतारी के मान मा।2
जग जननी माँ ले बड़े ,भगवन नहीं जहान मा।।
दोहा
मीठा बानी ला समझ , सबले बढ़िया मंत्र।
बैरी ला हितवा करे , अइसन हे ये यंत्र।।
आरती मा पूजा थाली के। सिंगार मा रंग लाली के।
सीमा में रखवाली के। माता मा वीणा वाली के।
ब्रह्माण्ड मा रवि के। नेता मन के सुंदर छवि के।
बंबई मा अंधेरी नवी के। दुनिया मा कवि के॥
बाग बगीचा मा माली के।प्यार मा जनाबे आली के।
नगर निगम मा नाली के। पेड़ पौधा मा डाली के।
बिहना चाय पियाली के। ससुराल मा साली के।
कुरता मा बंगाली के।। कवि सम्मेलन मा ताली....
१गाँव के बड़ा महत्व हे।
२प्रसिद्ध कवि ...
जब देखा उन्होंने तिरछी नज़र से हम मदहोश हो गए
जब पताचला कि नज़रें ही तिरछी हैं हम बेहोश हो गए
अगर सीता बने जो तू तो मैं भी राम बन जाऊं
अगर राधा बने जो तू तो मैं भी श्याम बन जाऊं
बनाना जो भी चाहो तुम बनू सब कुछ मेरी प्रियतम
अगर सोडा बने जो तू तो मैं भी जाम बन जाऊं
जेती देखबे तेती संगी मया के मतवार बइठे हे।
कोरी कोरी निपट गे खैरखा तैयार बइठे हे।
बरबाद होथे निपोरवा मन टुरी के चक्कर मा।
अउ कहिथे सरकार के सेती बेरोजगार बइठे हे॥
येती ओती आँखी मटकाना अब इम्तिहान लगथे।
बिना रंग के कोनो नइहे रंग मा बुड़े जहान लगथे।
कइसे पहचाने बबा नारीमन के अदाए रंगबसंती ला
ब्युटी पार्लर के जमाना हे बुढ़िया घलो जवान लगथे॥
दाई हर दाई होथे , कभू बाप तो कभू भाई होथे।
त्याग अउ तपस्या कस जिनगी बड़ करलाई होथे।
चोट लगथे बेटा ला अउ घाव होथे दाई के देंह मा।
सबके पीड़ा ला अनुभव करके रोवैया दाई होथे॥
अत्याचार झन करव फूलत फलत फोंक मा।
बेटी ला झन सरमेटव गंदा फरफंद जोक मा।
बेटी मान मर्यादा लाज अउ सृष्टि के आधार हे
अइसन दुलौरिन ला झन मारव कोख मा॥
देवालयों में बजते शंख की ध्वनि है बेटी।
देवताओं के हवन यज्ञ की अगनि है बेटी।
खुशनसीब है जिनके आंगन में है बेटी।
जग की तमाम खुशियों की जननि है बेटी॥
बहर : २१२-१२२२-२१२-१२२२*
लय :तुम तो ठहर परदेसी
खाके' चटनी' बासी मय सेवा' ला बजाहूँ ओ।
तोर नाव दुनिया मा सब डहर फै'लाहूँ ओ।
माटी' अउ म्हतारी के जग म बड़ महत्तम हे।
तोर जस अबड़ दानी अउ कहां ले पाहूँ ओ।
जिंदगी मा मनखे के बस तहीं अधारी हस।
गुन ल तोर' गाहूँ मय महिमा' ला बताहूँ ओ।
माटी के कथा गाथे राम कृष्ण जस ज्ञानी।
उखरे' बोली' भाखा ला बस महूँ सुनाहूँ ओ।
संझा' अउ बिहनिया ओ वीर तोर जस गावे।
माटी' के मोर करजा ला अइसने चुकाहूँ ओ॥
पतरेंगी अस छोकरी , आये रोज बजार।
अंतस ओला देख के , गाये गीत हजार।।
डर के मारे नइ कहँव , अपन हृदय के बात।
तभो समझ वो जाय जी , मोर सबे जज्बात।।
तूमा भाँटा ले सजे , पसरा लागे नीक।
घेरी बेरी प्यार ले , बात करय सब ठीक।।
आवत जावत कहि परौं,का राखे हस हीर।
वोहर कहि दे हाँव ले , आई लभ यू वीर।।
बड़ लजकुरहा आँव मैं , लागय मोला लाज।
बाजय गदकड़ गद तभो , एक सार के साज।।
मिर्चा भाटा संग मा , लेवौं रोज पताल।
बइठौ पसरा मेर ता , अपन बतावय हाल।।
भरगे पीरा मूड़ मा , करम फाटगे मोर।
सब्जी वाली छोकरी , कहिस हरौ मैं तोर।।
विरेन्द्र कुमार साहू