सोमवार, 26 सितंबर 2016
एकलभ्य के कहिनी
दुवापर जुग के बात आय , जेन समय धरमराज अरजुन दुरयोधन मन नान नान रिहिन अउ गुरू द्रोना के आसरम म रहिके सिक्छा लेवत रिहीन।
सबो लइका मन गुरू महराज के बात मानय अउ ओकर बताय बात ल जल्दी सिख जावय । अरजुन हर सबो लइका ले जादा हुसियार रहय अउ सिखे बर नवा नवा जतन करे । गुरू द्रोना अरजुन के परतिभा ल देखके अचरज मानय । एक दिन गुरू महराज हर अरजुन के मिहनत ल देख के किहिस कि तोर जस धनुसधारी ये दुनिया म अउ कोनो नी हो सकय । गुरू के परसंसा पाके अरजुन मनेमन अबड़ खुस रहय अउ अपन बिदिया ल चोखा करे बर रातदिन जतन करय । एकदिन गुरु हर अपन सबो सिस्य के परीछा लिस । गुरू सिस्य मन ल धनुष बान देके अपन लक्ष्य बनाए बर काहय तो सब ऐती ओती के जिनिस मन ल बतावय फेर जब अरजुन के पारी आइस तब अरजुन ल गुरू हर पुछय कि तोला का दिखत हवय ।
अरजुन धनुस में बान ल चढ़ा के कान तीरले खींच के एक आंखी ल मुंद के कहय गुरूदेव मोला मिठ्ठू के आंखी के सिवाय अउ कांही नी दिखथे ।गुरू अरजुन के बात ल सुनके खुस हो गिस अउ किहिस तोर लछ ठोसहा हे बेटा बान छोड़दे । अरजुन बान छोड़थे मिठ्ठू के आंखी गोभा जथे ,दांहेले भिंया म गिरथे । गुरूदेव अरजुन के धनुस बिदिया ले खुस होके कइथे तोर जस धनुस चलइया ए दुनिया म कोनो नई होवय । उही समे एकलभ्य नांव के एक भील लइका हर घलो धनुष बान सीखे बर गुरू खोजत रहय ।सबके मुंहू ले एके बात सुनय कि धनुस बिदिया सिखोय बर द्रोना ले बड़का गुरू ये संसार म नई हे। एकलभ्य के मन ह अब गुरू द्रोना ले मिले बर तालाबेली देवत रहय ।
एक दिन एकलभ्य हर बड़े फजर ले नहा धोके अपन दई ददा के पांव परके गुरू द्रोना ले भेंट करे बर ओकर आसरम म पहुचथे । गुरूदेव के पल्लगी करके दोनो हाथ जोरके धनुसबिदिया सिखोये के अरजी करीस । गुरूदेव हर एकलभ्य ल ओकर परिचे पुछीस त ओहर बिना दोबा छोपी करे सबो बात ल बताइस ।
गुरू द्रोना हर एकलभ्य ल छुत लइका जान के धनुस बिदिया सिखोय ले इनकार कर देथे अउ कथे मेहर राजा धृतराष्ट अउ पान्डु के राजकुमार मन ल छिक्सा देवत हंव ।कहूं मे तहुला सिखाहू अउ ये बात ल राजा हर जान डरही ते मोर परान ले डरही । एकलभ्य उदास मन ले जंगल के रसता जावत रथे ,जावत जावत मन म बिचार करथे कि मे धनुस बान सिख के रहूं । तरकना लगाके पथरा ल गुरू द्रोना के मुरति बनाके सुघ्घर आसन म बइठाके पूजा अरचना करथे अउ धनुस बान लेके अपन लछ मे रातदिन आघु बढ़थे फेर केहे घलो हे होनहार बिरवान के होत चिकने पात दिनबदिन मिहनत करथे अउ एक होनहार धनुसधारी बन जथे । एक दिन जंगल म गुरू द्रोना हर अरजुन संग सबो सिस्य ल सब्दभेदी बान चलाय बर सिखोवत रथे अरजुन हर छेरी के आवाज़ ल सुन के लछ ल खोजत रथे कि जेन आवाज वो सुनत रथे वो चुप हो जथे । सब के सब अब छेरी डहर जाके देखथे तो ओकर मुंहू हर बान ले छेदा गेहे । गुरू द्रोना हर घुस्सा के मारे हांक पार के कइथे कि ये काम ल कोन बैरी करे हे जेकर परान तिरीया गेहे । द्रोना के आवाज ल सुनके उत्ती डहर ले भागत एकलभ्य हर आथे अउ गुरू द्रोना ल देखके पल्लगी मनाथे । द्रोना हर तमतमाके के कथे ते ए बिदिया ल कैसे जाने ? एकलभ्य हर दोनो हाथ जोर के कइथे तोर किरपा ले गुरूदेव। एती अरजुन के मन हर छटपटावत रथे कि गुरूदेव हर ये दुनिया म मोर ले बड़का धनुसधारी कोई नई हे कथे फेर ये कहां ले आगे । द्रोना हर अरजुन के मन ल जान डरथे ।फेर एकलभ्य ल पुछथे कइसे ? एकलभ्य हर सबो किस्सा ल बताथे । गुरू द्रोना हर राजभय अउ अरजुन ल केहे बात के मान रखे बर एकलभ्य सन छल करथे अउ कथे सिरतोन म तोला धनुस मेहर सिखाहो त तोला मोला गुरूदछिना देहे ल परही । एती एकलभ्य हर सादा मन ले गुरूदेव ल गुरूदछिना देके गुरू के करजा ले थोरकुन मुकति पायेके सोचत हवय । अपन भाग ल सहुरावत एकलभ्य हर गुरूदेव ल कइथे मांग गुरूदेव ये लईका हर अपन परान घलो देके अपन बचन पुरा करही ।एकलभ्य के बात ल सुनके गुरू द्रोना हर छल करके कइथे ले ठीक हे एकलभ्य ते मोला कुछु दे सकथस त मोला तोर जेवनी हाथ के अंगठा ल कांट के दे। गुरू के बात ल सुनके सब कोई अकबका जथे । एकलभ्य के भाव म थोरको फरक नइ परे । धरमराज गुरू ल कइथे ये कइसन दछिना हरे गुरूदेव । धरमराज अउ कुछु कही पातीस येकर पहिली गुरू द्रोना हर चुप करा देथे । येती एकलभ्य हर अपन जेवनी हाथ के अंगठा ल तीर में काट के गुरूदेव के पंवरी म मढ़ा देथे । तरतर लहू के धार बोहावत हे तभो ले एकलभ्य अपन भाग ल सहुरावत हे। द्रोना अपन सिस्य मन ल लेके अपन आसरम डहर चल देथे फेर संसार अइसन गुरूभक्त सिस्य ल जब तक ये चंदा सुरूज के अंजोर रही तब तक याद करही ।
कहिनी- वीरेन्द्र साहू
9993690899
रविवार, 25 सितंबर 2016
मानस की रोचक बातें
🏹 रामायण के कुछ रोचक तथ्य🏹
1:~मानस में राम शब्द=1443 बार आया है।
2:~मानस में सीता शब्द=147 बार आया है।
3:~मानस में जानकी शब्द= 69 बार आया है।
4:~मानस में बड़भागी शब्द=58 बार आया है।
5:~मानस में कोटि शब्द=125 बार आया है।
6:~मानस में एक बार शब्द= 18 बार आया है।
7:~मानस में मन्दिर शब्द= 35 बार आया है।
8:~मानस में मरम शब्द =40 आर आया है।
9:~मानस में श्लोक संख्या=27 है।
10:~लंका में राम जी =111 दिन रहे।
11:~लंका में सीताजी =435 दिन रही।
12:~मानस में चोपाई संख्या=4608 है।
13:~मानस में दोहा संख्या=1074 है।
14:~मानस में सोरठा=207 है।
15:~मानस में छन्द=86 है।
16:~सुग्रीव में बल था=10000 हाथियों का
17:~सीता रानी बनी=33वर्ष की उम्र में।
18:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र=77 वर्ष
19:~पुष्पक विमान की चाल=400 मील/घण्टा
20:~रामादल व् रावण दल का युद्ध=87 दिन चला
21:~राम रावण युद्ध=32 दिन चला।
22:~सेतु निर्माण=5 दिन में हुआ।
23:~नलनील के पिता=विश्वकर्मा
24:~त्रिजटा के पिता=विभीषण
25:~दशरथ की उम्र थी=60000 वर्ष।
26:~सुमन्त की उम्र=9999 वर्ष।
27:~विश्वामित्र राम को ले गए=10 दिन के लिए।
28:~मानस में बैदेही शब्द=51 बार आया है।
29:~ मानस को लिखने में दो वर्ष सात माह छब्बीस दिन का समय लगा ।
भगवान
Who is GOD-
G- Generator
O- Organizer
D- Destroyer
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।
वीरेन्द्र साहू
9993690899
शनिवार, 3 सितंबर 2016
29 राज्यों के प्रथमाक्षर सोरठा
सोरठा- मेत्रि हहि राम, आज अबिअ उपकम।
गोत सिते झाम ,गुना छओ उप केमि ॥
चूंकि यहाँ सभी राज्यों का नाम शामिल करना पड़ा इसलिए मात्रा पर विशेष ध्यान नही है ।
प्रत्येक वर्ण से संबंधित राज्य क्रमशः---
१. मेघालय
२. त्रिपुरा
३. हरियाणा
४.हिमाचल
५.राजस्थान
६.मध्यप्रदेश
७.आंध्रप्रदेश
८.जम्मू
९.अरूणाचल
१०. बिहार
११.असम
१२.उत्तरप्रदेश
१३.पश्चिम बंगाल
१४.कर्नाटक
१५.महाराष्ट्र
१६.गोवा
१७. तमिलनाडु
१८. सिक्किम
१९.तेलंगाना
२०.झारखंड
२१. मणिपुर
२२. गुजरात
२३. नागालैण्ड
२४. छत्तीसगढ़
२५. ओड़िसा
२६.उत्तराखंड
२७.पंजाब
२८.केरल
२९.मिजोरम ।।
सोरठा का अर्थ-
मित्रता होगा राम आज अभी इसके लिए प्रयास होगा।
पश्चात सभी उपक्रमों को विचार कर माता सिता की खोज करेंगे ।
रचना-
विरेन्द्र साहू "मानसपुत्र"
शिक्षक प्राथमिक शाला घटकर्रा ।
राजीम
9993690899
कृपया इसकी उपयोगिता बनाएं रखे व छेड़छाड़ न करें ।
निवेदन ।
कविता
कविता
कवि ह्रदय की व्यथा ,
मन से उदधृत कथा,
मानस मूल का प्रचार,
वाणी रूप में विचार,
जो अनेक भावो का,
यात्रा कराती है ,
कवि की कविता कहाती है।
ये प्रकृति के कण कण में,
जीवन के क्षण क्षण में,
नगर शहर घन वन में,
सबके मन को भाती है ,
कवि की कविता कहाती है।
विरेन्द्र साहू राजीम छ. ग.॥
हसो
मत छेड़ो यौवन को धोखा होगा।
बड़ी मुद्दत से चाहत को रोका होगा।।
लग गई ग़र नशा उसे मिलन का।
तो सोच! अरे कालिया अब तेरा क्या होगा??
विरेन्द्र साहू
कलाम
कलाम जी के प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि -
सादा जीवन उच्च विचार,
कोमल मधुर एक व्यवहार,
नव निर्माण की बुध्दि अपार,
गुणी विलक्षण कलमकार,
दिव्यपुंज को राष्ट्रीय आभार,
करूँ नमन मैं बारम्बार।।
विरेन्द्र साहू राजीम।
पहचान
मुझे अपनी कवित्व का कोई पहचान नही चाहिए।
मिले जो चापलूसी से ऐसा सम्मान नही चाहिए॥
सुरता
डोकरी दाई के लोरी भुलागे,
अब तो पेरा के डोरी सिरागे ।
सुकवा उवत उठइया नइये,
बइला के दउरी फंदइया भुलागे।
गाडा बइला के खेदइया नइये,
बियारा के सुतइया नदागे।
डोकरा बबा के मुठीया छेना,
चोंगी माखुर पसिया भुलागे।
डोकरी दाई के परइ गोरसी,
जांता जंतली ढेंकी नदागे।
दूध भात अउ फरा चिला,
बासी पसिया के खवइया नदागे।
परछी छितका कुरिया माटी के,
गांव म छानी परवा नदागे।
नइये गोबर के लिपइया,
पानी के कुआं बउली नदागे।
मया परेम के सुघ्घर तिहार
भाई चारा अउ सुनता भुलागे।
दारू महुआ के फेर म,
संस्कृति अउ परंपरा नदागे।
🌿जय छत्तीसगढ़🌿
सफलता
वीरू गुलाब कांटे बीच
जो चुभे सो पावे ।
जो न चुभन सहि सके
रहि रहि के पछतावे ।।
वीरेन्द्र साहू "कवि"
राम तुझे आना पड़ेगा
हो रहा है धर्म की हानि, व्यथित धरती महारानी।
खो रहा चैनों अमन, तड़प रही मछली बिन पानी॥
आतताइयों को भगाकर, धर्मध्वजा फहराना पड़ेगा।
मानवता का पाठ पढाने ,राम तुझे आना पड़ेगा ॥
भारत वर्ष की शस्य श्यामला ,भूमि रक्त रंजीत है।
संस्कारों की उत्तम शिक्षा,शिक्षालयों में वर्जित है॥
अखंड भारत की रक्षा का संकल्प दोहराना पड़ेगा।
मानवता की रक्षा के लिये ,राम तुझे आना पड़ेगा॥
त्रेता में था एक परंतु अब हर घर में रावण है।
रक्त बरसाने निरपराधों के मानो बर्षा सावन है॥
अत्याचार की अग्नि से बचाने बन घन बरसना पड़ेगा।
धर्म की स्थापना हेतु ,राम तुझे आना पड़ेगा ॥
वीरेन्द्र साहू "मानसपुत्र" राजीम छ. ग.
(कवि )
रामायण महिमा
-----------------रामायण महिमा-----------------------
----------------------------------------------------------
१.पुरूषोत्तम का अनुपम चरित,कहे मानव मानव का मीत ।जीवमात्र से दयाभाव हो,सदाचार हो सबसे प्रीत ॥
----------------------------------------------------------
१.पुरूषोत्तम का अनुपम चरित,कहे मानव मानव का मीत ।जीवमात्र से दयाभाव हो,सदाचार हो सबसे प्रीत ॥
सिया राममय की भावों का, मन में भरती रसायन है।
गूढ़ ज्ञान का मर्म बताती, यह पावन ग्रंथ रामायण है ॥
२.वेद ज्ञान विज्ञान कला की, ऐसा अनुठी रचना है ।
शंकर जी के पावन मानस , लोमस ऋषि का कहना है।
संत मुनि जन ध्यान लगाते, करते भव नौकायन है।
मुनि मन भावन पतित पावन धर्म मंच रामायण है॥
३.शबरी के जुठे बेर खाकर, भक्ति का मान बढ़ाया है।
निज जन के भक्ति की महिमा, प्रभु ने श्रीमुख से गाया है॥
अलौकिक की लौकिक गाथा, पाये जन अनपायन है ।
भारत की अनमोल संपदा, शास्त्र सुरस रामायण है ॥
४.नारियों की सम्मान जहां, व्यक्ति का उत्थान जहां है।
मानव चरित निर्माण की गाथा, राजधर्म का सार जहां है॥
मानवता की शिक्षा देती, पुरूषार्थ का परायण है।
नित स्मरणीय जग वंदनीय, पुण्य सलील रामायण है॥
५.करूणा पात्र के करूणाकर दीनो के दीनदयाल है।
मां कौशल्या पितु दशरथ के ,आंखों के तारे लाल है॥
साधु संत की रक्षा के लिये, सदैव कर्तव्य परायण है।
जगमंगल के लिये समर्पित, गाथा उनकी रामायण है॥
६.पतितों को पावन कर देती, बाल्मिकी जी साखी है।
मद में चुर अभिमान ह्दय को, राह दिखाती आंखी है॥
पत्थर दिल में प्रेम जगाते , सद्भावों का गायन है।
मातपिता गुरू चरण भक्ति की, पाठ पढ़ाती रामायण है॥
७. जीवमात्र से प्रेमभाव का,ज्ञान कराती गान है।
जीवन विद्या संग अध्यात्म का, चिंतन यह अनुसंधान है॥
गुरू ज्ञान ले विरेन्द्र साहू, करते नितनव गायन है।
मन्जु मनोरथ नवधा भक्ति ,चतुष: फलदायी रामायण है॥
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रचना- विरेन्द्र साहू शिक्षक
ग्राम- बोडराबांधा (राजीम)
9993690899
गूढ़ ज्ञान का मर्म बताती, यह पावन ग्रंथ रामायण है ॥
२.वेद ज्ञान विज्ञान कला की, ऐसा अनुठी रचना है ।
शंकर जी के पावन मानस , लोमस ऋषि का कहना है।
संत मुनि जन ध्यान लगाते, करते भव नौकायन है।
मुनि मन भावन पतित पावन धर्म मंच रामायण है॥
३.शबरी के जुठे बेर खाकर, भक्ति का मान बढ़ाया है।
निज जन के भक्ति की महिमा, प्रभु ने श्रीमुख से गाया है॥
अलौकिक की लौकिक गाथा, पाये जन अनपायन है ।
भारत की अनमोल संपदा, शास्त्र सुरस रामायण है ॥
४.नारियों की सम्मान जहां, व्यक्ति का उत्थान जहां है।
मानव चरित निर्माण की गाथा, राजधर्म का सार जहां है॥
मानवता की शिक्षा देती, पुरूषार्थ का परायण है।
नित स्मरणीय जग वंदनीय, पुण्य सलील रामायण है॥
५.करूणा पात्र के करूणाकर दीनो के दीनदयाल है।
मां कौशल्या पितु दशरथ के ,आंखों के तारे लाल है॥
साधु संत की रक्षा के लिये, सदैव कर्तव्य परायण है।
जगमंगल के लिये समर्पित, गाथा उनकी रामायण है॥
६.पतितों को पावन कर देती, बाल्मिकी जी साखी है।
मद में चुर अभिमान ह्दय को, राह दिखाती आंखी है॥
पत्थर दिल में प्रेम जगाते , सद्भावों का गायन है।
मातपिता गुरू चरण भक्ति की, पाठ पढ़ाती रामायण है॥
७. जीवमात्र से प्रेमभाव का,ज्ञान कराती गान है।
जीवन विद्या संग अध्यात्म का, चिंतन यह अनुसंधान है॥
गुरू ज्ञान ले विरेन्द्र साहू, करते नितनव गायन है।
मन्जु मनोरथ नवधा भक्ति ,चतुष: फलदायी रामायण है॥
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रचना- विरेन्द्र साहू शिक्षक
ग्राम- बोडराबांधा (राजीम)
9993690899
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