-----------------रामायण महिमा-----------------------
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१.पुरूषोत्तम का अनुपम चरित,कहे मानव मानव का मीत ।जीवमात्र से दयाभाव हो,सदाचार हो सबसे प्रीत ॥
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१.पुरूषोत्तम का अनुपम चरित,कहे मानव मानव का मीत ।जीवमात्र से दयाभाव हो,सदाचार हो सबसे प्रीत ॥
सिया राममय की भावों का, मन में भरती रसायन है।
गूढ़ ज्ञान का मर्म बताती, यह पावन ग्रंथ रामायण है ॥
२.वेद ज्ञान विज्ञान कला की, ऐसा अनुठी रचना है ।
शंकर जी के पावन मानस , लोमस ऋषि का कहना है।
संत मुनि जन ध्यान लगाते, करते भव नौकायन है।
मुनि मन भावन पतित पावन धर्म मंच रामायण है॥
३.शबरी के जुठे बेर खाकर, भक्ति का मान बढ़ाया है।
निज जन के भक्ति की महिमा, प्रभु ने श्रीमुख से गाया है॥
अलौकिक की लौकिक गाथा, पाये जन अनपायन है ।
भारत की अनमोल संपदा, शास्त्र सुरस रामायण है ॥
४.नारियों की सम्मान जहां, व्यक्ति का उत्थान जहां है।
मानव चरित निर्माण की गाथा, राजधर्म का सार जहां है॥
मानवता की शिक्षा देती, पुरूषार्थ का परायण है।
नित स्मरणीय जग वंदनीय, पुण्य सलील रामायण है॥
५.करूणा पात्र के करूणाकर दीनो के दीनदयाल है।
मां कौशल्या पितु दशरथ के ,आंखों के तारे लाल है॥
साधु संत की रक्षा के लिये, सदैव कर्तव्य परायण है।
जगमंगल के लिये समर्पित, गाथा उनकी रामायण है॥
६.पतितों को पावन कर देती, बाल्मिकी जी साखी है।
मद में चुर अभिमान ह्दय को, राह दिखाती आंखी है॥
पत्थर दिल में प्रेम जगाते , सद्भावों का गायन है।
मातपिता गुरू चरण भक्ति की, पाठ पढ़ाती रामायण है॥
७. जीवमात्र से प्रेमभाव का,ज्ञान कराती गान है।
जीवन विद्या संग अध्यात्म का, चिंतन यह अनुसंधान है॥
गुरू ज्ञान ले विरेन्द्र साहू, करते नितनव गायन है।
मन्जु मनोरथ नवधा भक्ति ,चतुष: फलदायी रामायण है॥
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रचना- विरेन्द्र साहू शिक्षक
ग्राम- बोडराबांधा (राजीम)
9993690899
गूढ़ ज्ञान का मर्म बताती, यह पावन ग्रंथ रामायण है ॥
२.वेद ज्ञान विज्ञान कला की, ऐसा अनुठी रचना है ।
शंकर जी के पावन मानस , लोमस ऋषि का कहना है।
संत मुनि जन ध्यान लगाते, करते भव नौकायन है।
मुनि मन भावन पतित पावन धर्म मंच रामायण है॥
३.शबरी के जुठे बेर खाकर, भक्ति का मान बढ़ाया है।
निज जन के भक्ति की महिमा, प्रभु ने श्रीमुख से गाया है॥
अलौकिक की लौकिक गाथा, पाये जन अनपायन है ।
भारत की अनमोल संपदा, शास्त्र सुरस रामायण है ॥
४.नारियों की सम्मान जहां, व्यक्ति का उत्थान जहां है।
मानव चरित निर्माण की गाथा, राजधर्म का सार जहां है॥
मानवता की शिक्षा देती, पुरूषार्थ का परायण है।
नित स्मरणीय जग वंदनीय, पुण्य सलील रामायण है॥
५.करूणा पात्र के करूणाकर दीनो के दीनदयाल है।
मां कौशल्या पितु दशरथ के ,आंखों के तारे लाल है॥
साधु संत की रक्षा के लिये, सदैव कर्तव्य परायण है।
जगमंगल के लिये समर्पित, गाथा उनकी रामायण है॥
६.पतितों को पावन कर देती, बाल्मिकी जी साखी है।
मद में चुर अभिमान ह्दय को, राह दिखाती आंखी है॥
पत्थर दिल में प्रेम जगाते , सद्भावों का गायन है।
मातपिता गुरू चरण भक्ति की, पाठ पढ़ाती रामायण है॥
७. जीवमात्र से प्रेमभाव का,ज्ञान कराती गान है।
जीवन विद्या संग अध्यात्म का, चिंतन यह अनुसंधान है॥
गुरू ज्ञान ले विरेन्द्र साहू, करते नितनव गायन है।
मन्जु मनोरथ नवधा भक्ति ,चतुष: फलदायी रामायण है॥
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रचना- विरेन्द्र साहू शिक्षक
ग्राम- बोडराबांधा (राजीम)
9993690899
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