बुधवार, 12 अक्टूबर 2016
माँ
एक मित्र की मां को उदास देख यह भाव
मेरे मन से निकल गया--
जरा याद करो अपना बालपन
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मां! आज क्यों इतनी दुखी है।
मुस्कराते चेहरे क्यों? रूखी है।
क्या ग़मो का कोई है बादल।
फिर भीगी क्यूं? मां का आंचल।
तड़प रही है अकेली पल हरपल।
बंधा दे कोई उन्हे ढांढस का बल।
देख दशा मां के मौन कैसा मन।
जरा याद करो अपना बालपन।।
ये वही है जिनके सांस तेरे लिए।
अलख को कियाअरदास तेरे लिए।
कामना की हर प्रयास तेरे लिए ।
उनको बस एक आस तेरे लिए।
पर उनकी हर बोल क्यूं?लगती।
बेफजूल और बकवास तेरे लिए।
मत चला! मां पर जुबानी कृपन।
जरा याद करो अपना बालपन।।
रचना-
विरेन्द्र साहू "कवि"
बोडराबांधा'पाण्डुका'
9993690899
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