बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

मानस में चार घाट

सुठि सुंदर संबाद बर ,बिरचे बुध्दि बिचारि । तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि ।। जय श्री राम! मानस में चार घाट- सज्जनों गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस की तुलना एक सरोवर से करते है। जिस प्रकार सरोवर में चार घाट होते है- गौघाट ,पंचायती घाट, राजघाट, पनघट (स्त्री घाट )। गौघाट अर्थात् सबके लिए सुलभ दीन हीन सबके लिए, पंचायती घाट अर्थात् जनसाधारण के लिए उपलब्ध, राजघाट अर्थात् विशेष जन के लिए आरक्षित, पनघट(यहाँ पर पनघट का विशेष अर्थ है- प्रण पूर्ण , सपथी स्री जो पराये पुरूष का छाया भी न स्पर्श करें) सती नारीयों के लिए आरक्षित घाट । गोस्वामी जी के मानस में चार घाट का आशय चार संवाद से है -१. शिव-पार्वती संवाद। जिसे ज्ञान घाट कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के राजघाट से किया गया है।२. कागभुशुण्डि -गरूड़ संवाद। जिसे उपासना घाट कहा गया है तथा इसकी तुलना सरोवर के पनघाट से किया गया है। ३. याज्ञवल्क्य- भारद्वाज संवाद को मानस में कर्म घाट कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के पंचायती घाट से किया गया है ।४. तुलसीदास (स्वयं)- संतसमाज को दैन्य घाट ( दीनता के भाव से ) कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के गौघाट से किया गया है। मानसानुरागी सज्जनों रामचरितमानस में विभिन्न गूढ़ शब्दो व भावो का समावेश गोस्वामी जी ने किया है उन्ही प्रसंगों में से एक है ये रामचरितमानस के चार घाट । विद्वतजन कहते है , रामकथा का प्रथम वर्णन भगवान भोलेनाथ ने मां भवानी के समक्ष प्रस्तुत किया । "रचि महेस निज मानस राखा पाइ सुसमय सिवा सन भाखा ॥ परन्तु मानस में कथा का क्रम देखें तो कथा कुछ इस प्रकार चलता है। गोस्वामी जी संत समाज को कथा सुनाते है तो याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद का अधार लेते है और जव याज्ञवल्क्य जी कथा सुनाते है तो शिव पार्वती संवाद का आधार लेते है और जब शिव जी माता पार्वती को कथा सुनाते है तो कागभुशुण्डि गरूड़ संवाद को आधार बनाते है । किसी किसी के मन में शंका पैदा होती है ऐसा क्यों ? जिज्ञासु जन विज्ञ हो कि रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने चार कल्प की कथा को एकसाथ पिरोया है । सज्जनों मानस के चार घाट अर्थात् चार संवाद में चार कल्प की रामकथा है ।संवाद दोनो पक्ष से होता है जिज्ञासु प्रश्न करते है विज्ञ समाधान करते है । चारो जिज्ञासु का उद्देश्य राम को जानना ( राम कवन मैं पूछव तोही) है। और जिस प्रकार सरोवर के जल को चारो घाटों के माध्यम से प्राप्त कर सकते है । कहने का अर्थ जो जैसा पाना चाहे सरोवर का जल सुलभ होता है । उसी प्रकार रामचरितमानस रूपी सरोवर में राम रूपी शीतल पावन जल को पाने का अर्थात् राम को जानने समझने के लिए चार संवाद (जिसे चार घाट कहा गया है ) है । ये चार घाट की जो महत्ता है वो हमें राम को पाने का मार्ग भी बताते है। ज्ञान प्राप्ति के माध्यम से , कर्मरत रहकर, उपासना द्वारा या फिर दीन भाव से याचक बनकर । आप जैसा पाना चाहे राम सर्व व्यापी है । रामचरितमानस में रामघाट ,ज्ञानघाट ,भक्ति घाट , मुक्ति घाट ,वैराग्य घाट ,नाम घाट आदि भावों का भी दर्शन होते है परन्तु जब जहाँ पर जिस भाव से आया है उसे वहीं उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए । अंत में बस यही कहना चाहूंगा कि सभी प्रसंगों दृषटान्तों का मानस में एक ही उद्देश्य है मानव को सन्मार्ग के लिए प्रेरित करना और मधुमय जीवन प्रदान कर अर्थ,धर्म, काम ,मोक्ष के पुरूषार्थ को प्राप्त करने में सहायक बनना । जय श्री राम ..! वीरेन्द्र साहू (व्याख्याकार) आदर्श मानस परिवार बोडराबांधा (पाण्डुका)

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