सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

करमा माता की आरती

करमा माता की आरती

जय करमा मइया कि माई जय करमा मइया।
निजजन को भवसागर से माँ पार करो नइया॥
कि जय करमा मइया......॥
जब जब पीर पड़ी स्वजनों पर तुम दौड़ी आई।
विपदा हरी तैलकारों की तुमने ही माई ॥
कि जय करमा मइया......॥
साहू वंश उजागर किन्हीं तुमने कल्याणी।
स्वर वंचित तैलिक अधरों को तुमने दी वाणी॥
कि जय करमा मइया......॥
मीरा सी महान दुर्गा सी दक्ष दुष्ट दलनी।
हे करूणामयी हमें शरण दो माता दुखहरणी ॥
कि जय करमा मइया......॥
तेरी खिचड़ी खाने आये जगन्नाथ स्वामी ।
धन्य धन्य माँ करमा जिनके भगवान अनुगामी॥
कि जय करमा मइया......॥
करमा मइया की आरती जो कोई जन गावे।
बेदराम लहे चारि पदारथ सुख समपत्ति पावे॥
कि जय करमा मइया......॥

संकलन- ॥विरेन्द्र साहू॥

रविवार, 16 अक्टूबर 2016

आरती राजिम मइया की

आरती माता राजिम मैया की।

जय राजिम मइया कि माई जय राजिम मइया।
हम है वंश तुम्हारे पार करो नैया ॥
कि जय राजिम मइया॥
कठिन तपस्या की माई, तब लोचन पायो ।
पथरा के बदला सोना दे बर जगतपाल आयो॥
कि जय राजिम मइया॥
पायके हीरा जवाहर माई का मन नही ललचायो।
तुलसी के भार में तीन लोक के मानिक तौलायो॥
कि जय राजिम मइया॥
राजीमलोचन नाम अमर हे जगत किरति गायो।
जन कल्याण के खातिर मंदिर बनवायो ॥
कि जय राजिम मइया॥
देख के भक्ति तोर महाप्रभु देईस तोला वरदान।
मोर नाम के आगे ले ही लोगन तोरे नाम ॥
कि जय राजिम मइया॥
राजीमलोचन संकटमोचन जो मन से गावे ।
संकट मिटे दरिद्र भागे सुख सम्पत्ति पावे ॥
कि जय राजिम मइया॥
राजिम मइया की आरती जो कोई जन गावे ।
पाय हरिपद प्रीति जगत में बहुरि नही आवे ॥
कि जय राजिम मइया॥
जय राजिम मइया कि माई जय राजिम मइया ।
तीन लोक के स्वामी ल तंय घानी म गिंजरइया ॥
कि जय राजिम मइया॥
-------------राजिम माता की जय-----------------

संकलन-॥विरेन्द्र साहू ॥

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

भगवान

जय श्री राम!
मित्रों रामचरितमानस में राम को ब्रह्म, भगवान और परमात्मा कहा गया है।
"राम ब्रह्म व्यापक भगवाना "
"राम सो परमात्मा भवानी"
"सोई दशरथ सुत भगत हित कोसलपति
भगवान"
इसका सुंदर विश्लेषण यह है कि जो वेदांती ब्रह्मचारी है वे राम को "ब्रह्म" व जो भक्त है वे "भगवान" व जो योगी हैं वे " परमात्मा" के रूप में मानते है।
"जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मुरत देखी तिन तैसी॥"

बुधवार, 12 अक्टूबर 2016

माँ

एक मित्र की मां को उदास देख यह भाव मेरे मन से निकल गया-- जरा याद करो अपना बालपन -----+-----@@@-------+------ मां! आज क्यों इतनी दुखी है। मुस्कराते चेहरे क्यों? रूखी है। क्या ग़मो का कोई है बादल। फिर भीगी क्यूं? मां का आंचल। तड़प रही है अकेली पल हरपल। बंधा दे कोई उन्हे ढांढस का बल। देख दशा मां के मौन कैसा मन। जरा याद करो अपना बालपन।। ये वही है जिनके सांस तेरे लिए। अलख को कियाअरदास तेरे लिए। कामना की हर प्रयास तेरे लिए । उनको बस एक आस तेरे लिए। पर उनकी हर बोल क्यूं?लगती। बेफजूल और बकवास तेरे लिए। मत चला! मां पर जुबानी कृपन। जरा याद करो अपना बालपन।। रचना- विरेन्द्र साहू "कवि" बोडराबांधा'पाण्डुका' 9993690899

रामचरितमानस के रोचक तथ्य-

रामायण के कुछ रोचक तथ्य

1. रामायण को महर्षि वाल्मीकि जी ने लिखा था तथा इस महाग्रंथ में 24,000 श्लोक, 500 उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड है |

2. जिस समय दशरथ जी ने पुत्रेष्ठी यज्ञ किया था उस समय दशरथ जी की आयु 60हजार वर्ष थी |

3. तुलसीरामायण में लिखा है की सीता जी के स्वयंवर में श्री राम ने भगवान शिव का धनुष बाण उठाया व इन्हें तोड़ दिया परंतु इस घटना का वाल्मीकि रामायण में कोई उल्लेख नहीं है |

4. रामचरितमानस के अनुसार परशुरामजी सीता स्वयंवर के मध्य में आए थे परंतु बाल्मीकि रामायण के अनुसार जब प्रभु श्री राम, माता सीता के साथ अयोध्या जा रहे थे उस समय बीच रास्ते में परशुराम जी इन्हें मिले थे।

5. जब भगवान श्री राम वनवास के लिए जा रहे थे तब उनकी आयु 27 वर्ष थी |

6. जब लक्ष्मण जी आए और उन्हें पता चला कि श्री राम को वनवास का आदेश मिला है तब वह बहुत क्रोधित हुए तथा श्री राम के पास जाकर उनसे अपने ही पिता के विरुद्ध युद्ध के लिए बोला परंतु बाद में श्री रामजी के समझाने पर वह शांत हो गए |

7. जब दशरथ जी ने श्री राम को वनवास के लिए कहा, तब वह चाहते थे कि श्री राम जी बहुत सा धन एवं दैनिक उपयोग की चीजें अपने साथ ले जाए परंतु कैकई ने इन सब चीजों के लिए भी मना कर दिया |

8. भरत जी को सपने में ही इनके पिता दशरथ की मृत्यु का अनुमान हो गया था क्योंकि उन्होंने अपने सपने में दशरथ जी को काले कपड़े पहने एवं उदास देखा था

9. हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस ब्रह्माण्ड में 33 करोड़ देवी-देवता है लेकिन बाल्मीकि रामायण के  अनुसार 33 करोड़ नहीं अपितू 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवी देवता है |

10. प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि जब माता सीता का अपहरण रावण के द्वारा हुआ तब जटायु ने उन्हें बचाने का प्रयास किया और अपना बलिदान दिया परंतु राम वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह जटायु नहीं थे अपितु उनके पिता अरुण थे |

11. जिस दिन रावण ने माता सीता का हरण किया तथा उन्हें अशोक वाटिका लेकर आया, उसी रात भगवान ब्रह्मदेव ने इंद्रदेव को एक विशेष प्रकार की खीर सीता जी को देने के लिए कहा, तब इंद्रदेव ने पहले अपनी अलौकिक शक्तियों के द्वारा अशोक वाटिका में उपस्थित सारे राक्षसों को सुला दिया, उसके बाद वह खीर माता सीता को दी |

12. जब भगवान श्री राम, लक्ष्मण जी, माता सीता की खोज में जंगल में गए तब वहां उनकी राह में कंबंध नाम का एक राक्षस आया जो श्री राम व लक्ष्मण के हाथ मारा गया परंतु वास्तव में कंबंध एक श्रापित देवता था और एक श्राप के कारण राक्षस योनी में जन्मा और जब प्रभु श्रीराम ने उसकी उसका मृत शरीर जलाया तब उसकी आत्मा मुक्त हो गई एवं उसने ही  श्रीराम व लक्ष्मण को सुग्रीव से मित्रता करने का मार्ग सुझाया |

13. एक बार रावण कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने गया और उसने वहां उपस्थित नंदी का मजाक उड़ाया इससे क्रोधित नंदी ने रावण को श्राप दिया कि एक वानर तेरी मृत्यु एवं पतन करण बनेगा |

14. वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब रावण ने कैलाश पर्वत उठाया था तब माता पार्वती ने क्रोधित होकर श्राप दिया था की तेरी मृत्यु का कारण एक स्त्री बनेगी |

15. विद्युतजिव्हा, रावण की बहन शुर्पणखां का पति था तथा यह कालकेय नामक राजा का सेनापति भी था | जब रावण पूरी दुनियाँ को जीतने निकला तब उसने कालकेय से भी युद्ध किया तथा इस युद्ध में विद्युतजिव्हा मारा गया तब क्रोधित शुर्पणखां ने रावण को श्राप दिया की वही एक दिन अपने भाई रावण की मृत्यु का कारण बनेगी |

16. जब राम और रावण के मध्य अंतिम युद्ध लड़ा जा रहा था तब इंद्रदेव ने अपना चमत्कारिक रथ श्रीराम के लिए भेजा था और इस रथ पर बैठ कर ही श्री राम ने रावण का वध किया |

17. एक बार रावण अपने पुष्पक विमान पर कही जा रहा था तब उसने एक सुंदर स्त्री को भगवान विष्णु की तपस्या करते हुए देखा जो श्री हरि विष्णु को पति रूप में पाना चाहती थी | रावण ने उसके बाल पकड़ कर उसे घसीटते हुए अपने साथ चलने को कहा परंतु उस स्त्री ने उसी क्षण अपने प्राण त्याग दिए और रावण को अपने कुल सहित नष्ट हो जाने का श्राप दिया |

18. रावण को अपनी सोने की लंका पर बहुत अहंकार था, परंतु इस लंका पर रावण से पहले उसके भाई कुबेर का राज था | रावण ने लंका को अपने भाई कुबेर से युद्ध करके जीता था |

19. रावण राक्षसों का राजा था तथा उस समय लगभग सभी बालक इससे बहुत ज्यादा डरते थे क्योंकि इसके दस सिर थे परन्तु रावण, शिव का बहुत बड़ा भक्त था तथा बहुत ही बुद्धिमान विद्यार्थी भी था, जिसने सारे वेद का अध्ययन किया |

20. रावण के रथ की ध्वजा पर अंकित वीणा के चिन्ह से यह पता लगता है कि रावण को संगीत भी प्रिय था तथा कई जगह इस बात का उल्लेख है कि रावण वीणा बजाने में भी निपुण था |

21. राजधर्म का निर्वाह करते हुए एक धोबी के कारण श्री राम ने माता सीता की अग्नि परीक्षा ली तथा इसके पश्चात माता सीता को वाल्मीकि के आश्रम में छोड़ दिया, बाद में जब पुनः श्री राम ने माता सीता को परीक्षा के लिए कहा तो माता सीता धरती में समा गयी, तब श्री राम व इनके पुत्र कुश, माता सीता को पकड़ने के लिए दौड़े परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी | इस घटना के पश्चात श्री राम को अत्यंत ही ग्लानी हुई की उन्होंने राजधर्म का निर्वाह तो किया लेकिन अपनी प्राणों से भी प्रिय पत्नी को उनके कारण कितने ही दुःख झेलने पडे, इसके कुछ समय पश्चात ही भगवान श्री राम ने सरयू नदी में जल समाधि ले ली एवं बैकुंठ धाम प्रस्थान कर गये |

22. जब सीता हरण के पश्चात रावण को पता चला की श्री राम, लंका की ओर युद्ध के लिए आ रहे है तब इनके भाई विभीषण ने माता सीताजी को लौटाकर राम से संधि करने को कहाँ लेकिन तब रावण बोला की अगर वह साधारण मानव है तब वह मुझे नहीं हरा सकते लेकिन अगर वह वास्तव में ईश्वर है तब उनके हाथो मेरी मृत्यु नहीं अपितु मोक्ष प्राप्ति होगी, अतः में युद्ध अवश्य करूँगा |

23. लक्ष्मण जी 14 सालो तक नहीं सोयें थे तथा इसी कारण इन्हें गुडाकेश भी कहा जाता है | रावण पुत्र मेघनाद को वरदान था की उसकी मृत्यु वही करेगा जो 14 वर्षो तक न सोया हो और इसी कारण मेघनाद, लक्ष्मण के द्वारा मारा गया |
24
1:~मानस में राम शब्द=1443 बार आया है।
2:~मानस में सीता शब्द=147 बार आया है।
3:~मानस में जानकी शब्द= 69 बार आया है।
4:~मानस में बड़भागी शब्द=58 बार आया है।
5:~मानस में कोटि शब्द=125 बार आया है।
6:~मानस में एक बार शब्द= 18 बार आया है।
7:~मानस में मन्दिर शब्द= 35 बार आया है।
8:~मानस में मरम शब्द =40 आर आया है।
9:~मानस में श्लोक संख्या=27 है।

10:~लंका में राम जी =111 दिन रहे।
11:~लंका में सीताजी =435 दिन रही।
12:~मानस में चोपाई संख्या=4608 है।
13:~मानस में दोहा संख्या=1074 है।
14:~मानस में सोरठा=207 है।

15:~मानस में छन्द=86 है।

16:~सुग्रीव में बल था=10000 हाथियों का
17:~सीता रानी बनी=33वर्ष की उम्र में।
18:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र=77 वर्ष
19:~पुष्पक विमान की चाल=400 मील/घण्टा
20:~रामादल व् रावण दल का युद्ध=87 दिन चला
21:~राम रावण युद्ध=32 दिन चला।
22:~सेतु निर्माण=5 दिन में हुआ।
23:~नलनील के पिता=विश्वकर्मा
24:~तुलसीदास ने रामचरितमानस 2वर्ष7माह26 में लिखा

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

मानव स्वभाव

वाह रे मानव तेरा स्वभाव.... ।। लाश को हाथ लगाता है तो नहाता है ... पर बेजुबान जीव को मार के खाता है ।। यह मंदिर-मस्ज़िद भी क्या गजब की जगह है दोस्तो. जंहा गरीब बाहर और अमीर अंदर 'भीख' मांगता है.. विचित्र दुनिया का कठोर सत्य. बारात मे दुल्हे सबसे पीछे और दुनिया आगे चलती है, मय्यत मे जनाजा आगे और दुनिया पीछे चलती है.. यानि दुनिया खुशी मे आगे और दुख मे पीछे हो जाती है..! अजब तेरी दुनिया गज़ब तेरा खेल मोमबत्ती जलाकर मुर्दों को याद करना और मोमबत्ती बुझाकर जन्मदिन मनाना... Wah re duniya !!!!! लाइन छोटी है,पर मतलब बहुत बड़ा है ~ उम्र भर उठाया बोझ उस कील ने ... और लोग तारीफ़ तस्वीर की करते रहे .. पायल हज़ारो रूपये में आती है, पर पैरो में पहनी जाती है और..... बिंदी 1 रूपये में आती है मगर माथे पर सजाई जाती है इसलिए कीमत मायने नहीं रखती उसका कृत्य मायने रखता हैं. एक किताबघर में पड़ी गीता और कुरान आपस में कभी नहीं लड़ते, और जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते.... नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है, मिठी बात करने वाले तो चापलुस भी होते है। इतिहास गवाह है की आज तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े। और मिठाई में तो अक़्सर कीड़े पड़ जाया करते है... अच्छे मार्ग पर कोई व्यक्ति नही जाता पर बुरे मार्ग पर सभी जाते है...... इसीलिये दारू बेचने वाला कहीं नही जाता , पर दूध बेचने वाले को घर-घर गली -गली , कोने- कोने जाना पड़ता है । दूध वाले से बार -बार पूछा जाता है कि पानी तो नही डाला ? पर दारू मे खुद हाथो से पानी मिला-मिला कर पीते है । इंसान की समझ सिर्फ इतनी हैं कि उसे "जानवर" कहो तो नाराज हो जाता हैं और "शेर" कहो तो खुश हो जाता हैं!

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

मानस में चार घाट

सुठि सुंदर संबाद बर ,बिरचे बुध्दि बिचारि । तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि ।। जय श्री राम! मानस में चार घाट- सज्जनों गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस की तुलना एक सरोवर से करते है। जिस प्रकार सरोवर में चार घाट होते है- गौघाट ,पंचायती घाट, राजघाट, पनघट (स्त्री घाट )। गौघाट अर्थात् सबके लिए सुलभ दीन हीन सबके लिए, पंचायती घाट अर्थात् जनसाधारण के लिए उपलब्ध, राजघाट अर्थात् विशेष जन के लिए आरक्षित, पनघट(यहाँ पर पनघट का विशेष अर्थ है- प्रण पूर्ण , सपथी स्री जो पराये पुरूष का छाया भी न स्पर्श करें) सती नारीयों के लिए आरक्षित घाट । गोस्वामी जी के मानस में चार घाट का आशय चार संवाद से है -१. शिव-पार्वती संवाद। जिसे ज्ञान घाट कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के राजघाट से किया गया है।२. कागभुशुण्डि -गरूड़ संवाद। जिसे उपासना घाट कहा गया है तथा इसकी तुलना सरोवर के पनघाट से किया गया है। ३. याज्ञवल्क्य- भारद्वाज संवाद को मानस में कर्म घाट कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के पंचायती घाट से किया गया है ।४. तुलसीदास (स्वयं)- संतसमाज को दैन्य घाट ( दीनता के भाव से ) कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के गौघाट से किया गया है। मानसानुरागी सज्जनों रामचरितमानस में विभिन्न गूढ़ शब्दो व भावो का समावेश गोस्वामी जी ने किया है उन्ही प्रसंगों में से एक है ये रामचरितमानस के चार घाट । विद्वतजन कहते है , रामकथा का प्रथम वर्णन भगवान भोलेनाथ ने मां भवानी के समक्ष प्रस्तुत किया । "रचि महेस निज मानस राखा पाइ सुसमय सिवा सन भाखा ॥ परन्तु मानस में कथा का क्रम देखें तो कथा कुछ इस प्रकार चलता है। गोस्वामी जी संत समाज को कथा सुनाते है तो याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद का अधार लेते है और जव याज्ञवल्क्य जी कथा सुनाते है तो शिव पार्वती संवाद का आधार लेते है और जब शिव जी माता पार्वती को कथा सुनाते है तो कागभुशुण्डि गरूड़ संवाद को आधार बनाते है । किसी किसी के मन में शंका पैदा होती है ऐसा क्यों ? जिज्ञासु जन विज्ञ हो कि रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने चार कल्प की कथा को एकसाथ पिरोया है । सज्जनों मानस के चार घाट अर्थात् चार संवाद में चार कल्प की रामकथा है ।संवाद दोनो पक्ष से होता है जिज्ञासु प्रश्न करते है विज्ञ समाधान करते है । चारो जिज्ञासु का उद्देश्य राम को जानना ( राम कवन मैं पूछव तोही) है। और जिस प्रकार सरोवर के जल को चारो घाटों के माध्यम से प्राप्त कर सकते है । कहने का अर्थ जो जैसा पाना चाहे सरोवर का जल सुलभ होता है । उसी प्रकार रामचरितमानस रूपी सरोवर में राम रूपी शीतल पावन जल को पाने का अर्थात् राम को जानने समझने के लिए चार संवाद (जिसे चार घाट कहा गया है ) है । ये चार घाट की जो महत्ता है वो हमें राम को पाने का मार्ग भी बताते है। ज्ञान प्राप्ति के माध्यम से , कर्मरत रहकर, उपासना द्वारा या फिर दीन भाव से याचक बनकर । आप जैसा पाना चाहे राम सर्व व्यापी है । रामचरितमानस में रामघाट ,ज्ञानघाट ,भक्ति घाट , मुक्ति घाट ,वैराग्य घाट ,नाम घाट आदि भावों का भी दर्शन होते है परन्तु जब जहाँ पर जिस भाव से आया है उसे वहीं उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए । अंत में बस यही कहना चाहूंगा कि सभी प्रसंगों दृषटान्तों का मानस में एक ही उद्देश्य है मानव को सन्मार्ग के लिए प्रेरित करना और मधुमय जीवन प्रदान कर अर्थ,धर्म, काम ,मोक्ष के पुरूषार्थ को प्राप्त करने में सहायक बनना । जय श्री राम ..! वीरेन्द्र साहू (व्याख्याकार) आदर्श मानस परिवार बोडराबांधा (पाण्डुका)

सोमवार, 26 सितंबर 2016

एकलभ्य के कहिनी

दुवापर जुग के बात आय , जेन समय धरमराज अरजुन दुरयोधन मन नान नान रिहिन अउ गुरू द्रोना के आसरम म रहिके सिक्छा लेवत रिहीन। सबो लइका मन गुरू महराज के बात मानय अउ ओकर बताय बात ल जल्दी सिख जावय । अरजुन हर सबो लइका ले जादा हुसियार रहय अउ सिखे बर नवा नवा जतन करे । गुरू द्रोना अरजुन के परतिभा ल देखके अचरज मानय । एक दिन गुरू महराज हर अरजुन के मिहनत ल देख के किहिस कि तोर जस धनुसधारी ये दुनिया म अउ कोनो नी हो सकय । गुरू के परसंसा पाके अरजुन मनेमन अबड़ खुस रहय अउ अपन बिदिया ल चोखा करे बर रातदिन जतन करय । एकदिन गुरु हर अपन सबो सिस्य के परीछा लिस । गुरू सिस्य मन ल धनुष बान देके अपन लक्ष्य बनाए बर काहय तो सब ऐती ओती के जिनिस मन ल बतावय फेर जब अरजुन के पारी आइस तब अरजुन ल गुरू हर पुछय कि तोला का दिखत हवय । अरजुन धनुस में बान ल चढ़ा के कान तीरले खींच के एक आंखी ल मुंद के कहय गुरूदेव मोला मिठ्ठू के आंखी के सिवाय अउ कांही नी दिखथे ।गुरू अरजुन के बात ल सुनके खुस हो गिस अउ किहिस तोर लछ ठोसहा हे बेटा बान छोड़दे । अरजुन बान छोड़थे मिठ्ठू के आंखी गोभा जथे ,दांहेले भिंया म गिरथे । गुरूदेव अरजुन के धनुस बिदिया ले खुस होके कइथे तोर जस धनुस चलइया ए दुनिया म कोनो नई होवय । उही समे एकलभ्य नांव के एक भील लइका हर घलो धनुष बान सीखे बर गुरू खोजत रहय ।सबके मुंहू ले एके बात सुनय कि धनुस बिदिया सिखोय बर द्रोना ले बड़का गुरू ये संसार म नई हे। एकलभ्य के मन ह अब गुरू द्रोना ले मिले बर तालाबेली देवत रहय । एक दिन एकलभ्य हर बड़े फजर ले नहा धोके अपन दई ददा के पांव परके गुरू द्रोना ले भेंट करे बर ओकर आसरम म पहुचथे । गुरूदेव के पल्लगी करके दोनो हाथ जोरके धनुसबिदिया सिखोये के अरजी करीस । गुरूदेव हर एकलभ्य ल ओकर परिचे पुछीस त ओहर बिना दोबा छोपी करे सबो बात ल बताइस । गुरू द्रोना हर एकलभ्य ल छुत लइका जान के धनुस बिदिया सिखोय ले इनकार कर देथे अउ कथे मेहर राजा धृतराष्ट अउ पान्डु के राजकुमार मन ल छिक्सा देवत हंव ।कहूं मे तहुला सिखाहू अउ ये बात ल राजा हर जान डरही ते मोर परान ले डरही । एकलभ्य उदास मन ले जंगल के रसता जावत रथे ,जावत जावत मन म बिचार करथे कि मे धनुस बान सिख के रहूं । तरकना लगाके पथरा ल गुरू द्रोना के मुरति बनाके सुघ्घर आसन म बइठाके पूजा अरचना करथे अउ धनुस बान लेके अपन लछ मे रातदिन आघु बढ़थे फेर केहे घलो हे होनहार बिरवान के होत चिकने पात दिनबदिन मिहनत करथे अउ एक होनहार धनुसधारी बन जथे । एक दिन जंगल म गुरू द्रोना हर अरजुन संग सबो सिस्य ल सब्दभेदी बान चलाय बर सिखोवत रथे अरजुन हर छेरी के आवाज़ ल सुन के लछ ल खोजत रथे कि जेन आवाज वो सुनत रथे वो चुप हो जथे । सब के सब अब छेरी डहर जाके देखथे तो ओकर मुंहू हर बान ले छेदा गेहे । गुरू द्रोना हर घुस्सा के मारे हांक पार के कइथे कि ये काम ल कोन बैरी करे हे जेकर परान तिरीया गेहे । द्रोना के आवाज ल सुनके उत्ती डहर ले भागत एकलभ्य हर आथे अउ गुरू द्रोना ल देखके पल्लगी मनाथे । द्रोना हर तमतमाके के कथे ते ए बिदिया ल कैसे जाने ? एकलभ्य हर दोनो हाथ जोर के कइथे तोर किरपा ले गुरूदेव। एती अरजुन के मन हर छटपटावत रथे कि गुरूदेव हर ये दुनिया म मोर ले बड़का धनुसधारी कोई नई हे कथे फेर ये कहां ले आगे । द्रोना हर अरजुन के मन ल जान डरथे ।फेर एकलभ्य ल पुछथे कइसे ? एकलभ्य हर सबो किस्सा ल बताथे । गुरू द्रोना हर राजभय अउ अरजुन ल केहे बात के मान रखे बर एकलभ्य सन छल करथे अउ कथे सिरतोन म तोला धनुस मेहर सिखाहो त तोला मोला गुरूदछिना देहे ल परही । एती एकलभ्य हर सादा मन ले गुरूदेव ल गुरूदछिना देके गुरू के करजा ले थोरकुन मुकति पायेके सोचत हवय । अपन भाग ल सहुरावत एकलभ्य हर गुरूदेव ल कइथे मांग गुरूदेव ये लईका हर अपन परान घलो देके अपन बचन पुरा करही ।एकलभ्य के बात ल सुनके गुरू द्रोना हर छल करके कइथे ले ठीक हे एकलभ्य ते मोला कुछु दे सकथस त मोला तोर जेवनी हाथ के अंगठा ल कांट के दे। गुरू के बात ल सुनके सब कोई अकबका जथे । एकलभ्य के भाव म थोरको फरक नइ परे । धरमराज गुरू ल कइथे ये कइसन दछिना हरे गुरूदेव । धरमराज अउ कुछु कही पातीस येकर पहिली गुरू द्रोना हर चुप करा देथे । येती एकलभ्य हर अपन जेवनी हाथ के अंगठा ल तीर में काट के गुरूदेव के पंवरी म मढ़ा देथे । तरतर लहू के धार बोहावत हे तभो ले एकलभ्य अपन भाग ल सहुरावत हे। द्रोना अपन सिस्य मन ल लेके अपन आसरम डहर चल देथे फेर संसार अइसन गुरूभक्त सिस्य ल जब तक ये चंदा सुरूज के अंजोर रही तब तक याद करही । कहिनी- वीरेन्द्र साहू 9993690899

रविवार, 25 सितंबर 2016

मानस की रोचक बातें

🏹 रामायण के कुछ रोचक तथ्य🏹 1:~मानस में राम शब्द=1443 बार आया है। 2:~मानस में सीता शब्द=147 बार आया है। 3:~मानस में जानकी शब्द= 69 बार आया है। 4:~मानस में बड़भागी शब्द=58 बार आया है। 5:~मानस में कोटि शब्द=125 बार आया है। 6:~मानस में एक बार शब्द= 18 बार आया है। 7:~मानस में मन्दिर शब्द= 35 बार आया है। 8:~मानस में मरम शब्द =40 आर आया है। 9:~मानस में श्लोक संख्या=27 है। 10:~लंका में राम जी =111 दिन रहे। 11:~लंका में सीताजी =435 दिन रही। 12:~मानस में चोपाई संख्या=4608 है। 13:~मानस में दोहा संख्या=1074 है। 14:~मानस में सोरठा=207 है। 15:~मानस में छन्द=86 है। 16:~सुग्रीव में बल था=10000 हाथियों का 17:~सीता रानी बनी=33वर्ष की उम्र में। 18:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र=77 वर्ष 19:~पुष्पक विमान की चाल=400 मील/घण्टा 20:~रामादल व् रावण दल का युद्ध=87 दिन चला 21:~राम रावण युद्ध=32 दिन चला। 22:~सेतु निर्माण=5 दिन में हुआ। 23:~नलनील के पिता=विश्वकर्मा 24:~त्रिजटा के पिता=विभीषण 25:~दशरथ की उम्र थी=60000 वर्ष। 26:~सुमन्त की उम्र=9999 वर्ष। 27:~विश्वामित्र राम को ले गए=10 दिन के लिए। 28:~मानस में बैदेही शब्द=51 बार आया है। 29:~ मानस को लिखने में दो वर्ष सात माह छब्बीस दिन का समय लगा ।

भगवान

Who is GOD- G- Generator O- Organizer D- Destroyer बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।। आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी।। तनु बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।। असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।। वीरेन्द्र साहू 9993690899

शनिवार, 3 सितंबर 2016

29 राज्यों के प्रथमाक्षर सोरठा

सोरठा- मेत्रि हहि राम, आज अबिअ उपकम। गोत सिते झाम ,गुना छओ उप केमि ॥ चूंकि यहाँ सभी राज्यों का नाम शामिल करना पड़ा इसलिए मात्रा पर विशेष ध्यान नही है । प्रत्येक वर्ण से संबंधित राज्य क्रमशः--- १. मेघालय २. त्रिपुरा ३. हरियाणा ४.हिमाचल ५.राजस्थान ६.मध्यप्रदेश ७.आंध्रप्रदेश ८.जम्मू ९.अरूणाचल १०. बिहार ११.असम १२.उत्तरप्रदेश १३.पश्चिम बंगाल १४.कर्नाटक १५.महाराष्ट्र १६.गोवा १७. तमिलनाडु १८. सिक्किम १९.तेलंगाना २०.झारखंड २१. मणिपुर २२. गुजरात २३. नागालैण्ड २४. छत्तीसगढ़ २५. ओड़िसा २६.उत्तराखंड २७.पंजाब २८.केरल २९.मिजोरम ।। सोरठा का अर्थ- मित्रता होगा राम आज अभी इसके लिए प्रयास होगा। पश्चात सभी उपक्रमों को विचार कर माता सिता की खोज करेंगे । रचना- विरेन्द्र साहू "मानसपुत्र" शिक्षक प्राथमिक शाला घटकर्रा । राजीम 9993690899 कृपया इसकी उपयोगिता बनाएं रखे व छेड़छाड़ न करें । निवेदन ।

कविता

कविता कवि ह्रदय की व्यथा , मन से उदधृत कथा, मानस मूल का प्रचार, वाणी रूप में विचार, जो अनेक भावो का, यात्रा कराती है , कवि की कविता कहाती है। ये प्रकृति के कण कण में, जीवन के क्षण क्षण में, नगर शहर घन वन में, सबके मन को भाती है , कवि की कविता कहाती है। विरेन्द्र साहू राजीम छ. ग.॥

हसो

मत छेड़ो यौवन को धोखा होगा। बड़ी मुद्दत से चाहत को रोका होगा।। लग गई ग़र नशा उसे मिलन का। तो सोच! अरे कालिया अब तेरा क्या होगा?? विरेन्द्र साहू

कलाम

कलाम जी के प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि - सादा जीवन उच्च विचार, कोमल मधुर एक व्यवहार, नव निर्माण की बुध्दि अपार, गुणी विलक्षण कलमकार, दिव्यपुंज को राष्ट्रीय आभार, करूँ नमन मैं बारम्बार।। विरेन्द्र साहू राजीम।

पहचान

मुझे अपनी कवित्व का कोई पहचान नही चाहिए। मिले जो चापलूसी से ऐसा सम्मान नही चाहिए॥

सुरता

डोकरी दाई के लोरी भुलागे, अब तो पेरा के डोरी सिरागे । सुकवा उवत उठइया नइये, बइला के दउरी फंदइया भुलागे। गाडा बइला के खेदइया नइये, बियारा के सुतइया नदागे। डोकरा बबा के मुठीया छेना, चोंगी माखुर पसिया भुलागे। डोकरी दाई के परइ गोरसी, जांता जंतली ढेंकी नदागे। दूध भात अउ फरा चिला, बासी पसिया के खवइया नदागे। परछी छितका कुरिया माटी के, गांव म छानी परवा नदागे। नइये गोबर के लिपइया, पानी के कुआं बउली नदागे। मया परेम के सुघ्घर तिहार भाई चारा अउ सुनता भुलागे। दारू महुआ के फेर म, संस्कृति अउ परंपरा नदागे। 🌿जय छत्तीसगढ़🌿

सफलता

वीरू गुलाब कांटे बीच जो चुभे सो पावे । जो न चुभन सहि सके रहि रहि के पछतावे ।। वीरेन्द्र साहू "कवि"

राम तुझे आना पड़ेगा

हो रहा है धर्म की हानि, व्यथित धरती महारानी।
खो रहा चैनों अमन, तड़प रही मछली बिन पानी॥
आतताइयों को भगाकर, धर्मध्वजा फहराना पड़ेगा।
मानवता का पाठ पढाने ,राम तुझे आना पड़ेगा ॥
भारत वर्ष की शस्य श्यामला ,भूमि रक्त रंजीत है।
संस्कारों की उत्तम  शिक्षा,शिक्षालयों में वर्जित है॥
अखंड भारत की रक्षा का संकल्प दोहराना पड़ेगा।
मानवता की रक्षा के लिये ,राम तुझे आना पड़ेगा॥
त्रेता में था एक परंतु अब हर घर में रावण है।
रक्त बरसाने निरपराधों के मानो बर्षा सावन है॥
अत्याचार की अग्नि से बचाने बन घन बरसना पड़ेगा।
धर्म की  स्थापना हेतु ,राम तुझे आना पड़ेगा ॥
वीरेन्द्र साहू "मानसपुत्र" राजीम छ. ग.
(कवि )

रामायण महिमा

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१.पुरूषोत्तम का अनुपम चरित,कहे मानव मानव का  मीत ।जीवमात्र से दयाभाव हो,सदाचार हो  सबसे प्रीत ॥
सिया राममय की भावों का, मन में भरती रसायन है।
गूढ़ ज्ञान का मर्म बताती, यह पावन ग्रंथ रामायण है ॥
२.वेद ज्ञान विज्ञान कला की, ऐसा अनुठी रचना है ।
शंकर जी के पावन मानस , लोमस ऋषि का कहना है।
संत मुनि जन ध्यान लगाते, करते भव नौकायन है।
मुनि मन भावन पतित पावन धर्म मंच रामायण है॥
३.शबरी के जुठे बेर खाकर, भक्ति का मान बढ़ाया है।
निज जन के भक्ति की महिमा, प्रभु ने श्रीमुख से गाया है॥
अलौकिक की लौकिक गाथा, पाये जन अनपायन है ।
भारत की अनमोल संपदा, शास्त्र सुरस रामायण है ॥
४.नारियों की सम्मान जहां, व्यक्ति का उत्थान जहां है।
मानव चरित निर्माण की गाथा, राजधर्म का सार जहां है॥
मानवता की शिक्षा देती, पुरूषार्थ का परायण है।
नित स्मरणीय जग वंदनीय, पुण्य सलील रामायण है॥
५.करूणा पात्र के करूणाकर दीनो के दीनदयाल है।
मां कौशल्या पितु दशरथ के ,आंखों के तारे लाल है॥
साधु संत की रक्षा के लिये, सदैव कर्तव्य परायण है।
जगमंगल के लिये समर्पित, गाथा उनकी रामायण है॥
६.पतितों को पावन कर देती, बाल्मिकी जी साखी है।
मद में चुर अभिमान ह्दय को, राह दिखाती आंखी  है॥
पत्थर दिल में प्रेम जगाते , सद्भावों का गायन है।
मातपिता  गुरू चरण भक्ति की, पाठ पढ़ाती रामायण है॥
७. जीवमात्र से प्रेमभाव का,ज्ञान कराती गान है।
जीवन विद्या संग  अध्यात्म का, चिंतन यह अनुसंधान है॥
गुरू ज्ञान ले विरेन्द्र साहू, करते नितनव गायन है।
मन्जु मनोरथ नवधा भक्ति ,चतुष: फलदायी रामायण है॥

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   रचना-      विरेन्द्र साहू शिक्षक
             ग्राम- बोडराबांधा (राजीम)
                 9993690899